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न निषेधो निषेधे या न गौरत्वमिति ।
124. नन्वेवमदृश्यमपि पिशाचादिकं दृश्यरूपतयाऽऽरोप्यप्रतिषेध्यतामिति चेन्न; आरोपयोग्यत्वं हि यस्यास्ति तस्यैवारोपः । यश्चार्थो विद्यमानो नियमेनोपलभ्येत स एवारोपयोग्यः, न तु पिशाचादिः । उपलम्भकारणसाकल्ये हि विद्यमानो घटो नियमेनोपलम्भयोग्यो गम्यते, न पुनः पिशाचादिः । घटस्योपलम्भकारणसाकल्यं चैकज्ञानसंसर्गिणि प्रदेशादावुपलभ्यमाने निश्चीयते। घटप्रदेशयोः खलूपलम्भकारणान्यविशिष्टानीति ।
शंका- जो नहीं है वह उपलब्धि लक्षण प्राप्त कैसे हो सकता है और जो उपलब्धि लक्षण प्राप्त है उसका असत्त्व कैसे कहा जा सकता है?
समाधान- उपलब्धि लक्षण प्राप्त का आरोप करके निषेध किया जाता है, क्योंकि सर्वत्र निषेध का विषय आरोपितरूप ही होता है। जैसे यह गोरा नहीं है। यहाँ पर ऐसा तो नहीं कह सकते कि गोरापन है तो निषेध नहीं हो सकता और निषेध ही है तो गोरापन कैसा?
124. शंका- यदि ऐसा है तो अदृश्यभूत पिशाचादि का भी दृश्यपने का आरोप करके प्रतिषेध करना चाहिये?
समाधान- नहीं, जिसमें आरोप की योग्यता होती है उसी का आरोप किया जाता है। जो विद्यमान पदार्थ नियम से उपलब्ध होता है वही आरोप योग्य होता है न कि पिशाचादि । इसका भी कारण यह है कि उपलम्भ अर्थात् प्रत्यक्ष होने के सकल कारण मिलने पर विद्यमान घट नियम से उपलम्भ योग्य हो जाता है किन्तु पिशाचादि ऐसे नहीं होते। घट के प्रत्यक्ष होने के सकल कारण तो एक व्यक्ति के ज्ञान संसर्गी उपलभ्यमान प्रदेशादि में निश्चित किये जाते हैं (अर्थात् जाने जाते हैं)। घट और उसके रखने का प्रदेश इन दोनों के प्रत्यक्ष होने के कारण समान है अर्थात् घट और उसका स्थान ये दोनों ही एक ही पुरुष के ज्ञान के द्वारा जाने जाते हैं। अतः घट आरोप योग्य है। पिशाच आदि ऐसे नहीं है।
प्रमेयकमलमार्तण्डसार 163