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________________ 3/71-72 विरुद्धतदुपलब्धिः प्रतिषेधे तथेति ॥71॥ प्रतिषेध्येन यद्विरुद्धं तत्सम्बन्धिनां तेषां व्याप्यादीनामुपलब्धिः प्रतिषेधे साध्ये तथाऽविरुद्धोपलब्धिवत् षट्प्रकारा। तानेव षट् प्रकारान् यथेत्यादिना प्रदर्शयति(यथा) नास्त्यत्र शीतस्पर्श औष्ण्यात् ।।72॥ यह दिया कि एक मुहूर्त के अनन्तर रोहिणी का उदय होगा क्योंकि कृतिका का उदय हो रहा। उत्तर हेतु- एक मुहूर्त पहले भरणि का उदय हो चुका है क्योंकि अब कृतिकोदय हो रहा। भरणि कृतिका और रोहिणी इन तीन नक्षत्रों का आकाश में उदय एक-एक मुहूर्त के अन्तराल से होता है अतः ज्योतिर्विद इनमें से किसी एक नक्षत्रोदय को देखकर अन्य नक्षत्र के उदय का अनुमान कर लेते हैं। कृतिकोदय इनके मध्यवर्ती है अतः यह रोहिणी उदय का पूर्वचर है और भरणिका उत्तरचर है। कृतिकोदय को देखकर दोनों अनुमान हो जाते हैं कि एक मुहूर्त पहले भरणि का उदय हो चुका है, तथा एक मुहूर्त बाद रोहिणी का उदय होगा। इस तरह कृतिकोदय हेतु भरणि के प्रति उत्तरचर और रोहिणी के प्रति पूर्वचर है। ___ यहाँ अविरुद्धोपलब्धि के उदाहरणों को प्रस्तुत करने के बाद अब विरुद्धोपलब्धि के उदाहरणों का प्रतिपादन करते हैं विरुद्धतदपलब्धिः प्रतिषेधे तथेति 171 सूत्रार्थ- प्रतिषेधरूप साध्य में विरुद्धोपलब्धि हेतु के वैसे ही भेद होते हैं। प्रतिषेध्यरूप साध्य से जो विरुद्ध है उस विरुद्ध के सम्बन्धभूत व्याप्य, कार्य आदि की उपलब्धि होना विरुद्धतदुपलब्धि कहलाती है, प्रतिषेधरूप साध्य में इस हेतु के अविरुद्धोपलब्धि के समान छह भेद हैं। अब उन्हीं के भेद क्रम से बताते हैंयथा नास्त्यत्र शीतस्पर्श औष्ण्यात् ॥72॥ प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 159
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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