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________________ 3/62-63 112. ननु स्वसत्तासमवायात्पूर्वमसन्तोपि मरणादयोऽरिष्टादिकार्यकारिणो दृष्टास्ततोऽनेकान्तो हेतोरित्याशङ्कय भाव्यतीतयोरित्यादिना प्रतिविधत्तेभाव्यतीतयोर्मरणजाग्रद्बोधयोरपि नारिष्टोद्बोधौ प्रतिहेतुत्वम् 116211 तद्व्यापाराश्रितं हि तद्भावभावित्वम् ॥63॥ 113. न च पूर्वमेवोत्पन्नमरिष्टं करतलरेखादिकं वा भाविनो मरणस्य राज्यादेर्व्यापारमपेक्षते, स्वयमुत्पन्नस्यापरापेक्षायोगात्। अथास्योत्पत्ति 112. शंका- स्वसत्ता का समवाय होने के पहले मरणादिक असद्भूत होते हुए भी अरिष्ट आदि कार्य को करते हुए देखे गये हैं अर्थात् मरण भावीकाल में स्थित है और उसका अरिष्टरूप कार्य पहले होता है अतः कारण हेतु पहले ही होता है ऐसा कारण हेतु का लक्षण व्यभिचरित होता है? समाधान- इसी आशंका का समाधान अग्रिम सूत्र द्वारा करते हैं भाव्यतीतयोर्मरणजाग्रद्बोधयोरपि नारिष्टोद्बोधौ प्रतिहेतुत्वम् ॥62॥ तद्व्यापाराश्रितं हि तद्भावभावित्वम् ॥631 सूत्रार्थ - भावी मरण का अरिष्ट के प्रति हेतुपना नहीं है, तथा अतीत जाग्रद् बोध का ( निद्रा लेने के पहले का जाग्रत अवस्था के ज्ञान का) उद्बोध के (निद्रा के अनन्तर होने वाले ज्ञान के) प्रति हेतुपना नहीं है, अर्थात् भावीकाल में होने वाला मरण वर्त्तमान के अरिष्ट का कारण नहीं हो सकता एवं अतीतकाल का जागृत ज्ञान आगामी अनेक समयों के अन्तराल के होने वाले उद्बोध का (सुप्तदशा के अनन्तर का ज्ञान ) कारण नहीं हो सकता, क्योंकि कारणभाव का होना कारण के व्यापार के आश्रित है। 113. पहले से ही उत्पन्न हुए अरिष्ट आदि अथवा हस्तरेखादिक आगामी काल के मरण या राज्यप्राप्ति आदि के व्यापार की अपेक्षा नहीं प्रमेयकमलमार्त्तण्डसार:: 147
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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