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________________ 3/34 84. 'ननु प्रसिद्धो धर्मीत्यादिपक्षलक्षणप्रणयनमयुक्तम्; अस्ति सर्वज्ञ इत्याद्यनुमानप्रयोगे पक्षप्रयोगस्यैवासम्भवात् अर्थादापन्नत्वात्तस्य । अर्थादापन्नस्याप्यभिधाने पुनरुक्तत्वप्रसङ्गः- अर्थादापन्नस्य स्वशब्देनाभिधानं पुनरुक्तम् इत्यभिधानात् तत्प्रयोगेपि च हेत्वादिवचनमन्तरेण साध्याप्रसिद्धेस्तद्वचनादेव च तत्प्रसिद्धेर्व्यर्थः पक्षप्रयोगः' इत्याशङ्कय साध्यधर्माधारेत्यादिना प्रतिविधत्ते साध्यधर्माधारसन्वेहापनोदाय गम्यमानस्यापि पक्षस्य वचनम् ॥34॥ 85. साध्यधर्मोऽस्तित्वादिः तस्याधार आश्रयः यत्रासौ साध्यधमों इस अनुमान के कृतकत्व हेतु का अन्वय केवल अनित्यत्वादिविशिष्ट शब्द में ही नहीं है अर्थात् जहाँ जहाँ कृतकत्वादि प्रतीत होता है वहाँ वहाँ शब्द रूप धर्मी ही प्रतीत हो ऐसी बात नहीं, कृतकत्व तो शब्द के समान घट पट आदि अनेकों के साथ रहता है। 84. बौद्ध - " प्रसिद्धो धर्मी" इस प्रकार से पक्ष का लक्षण करना अयुक्त है, क्योंकि " सर्वज्ञ" है इत्यादि अनुमान प्रयोग में पक्ष का प्रयोग होना ही असम्भव है, पक्ष तो आर्थादापन्न ही है (प्रकरण से ही गम्य है) अर्थादापन्न का भी कथन करे तो पुनरुक्त दोष आयेगा 44 “ अर्थादापन्नस्य स्वशब्देनाभिधानम् पुनरुक्तम्" ऐसा न्याय सूत्र में कहा है। तथा पक्ष का प्रयोग करने पर भी जब तक हेतु वचन प्रयुक्त नहीं होता तब तक साध्य की सिद्धि नहीं होती, हेतु वचन से ही साध्य की सिद्धि होती है अतः पक्ष का प्रयोग करना व्यर्थ है। अब इसी शंका का निरसन करते हुए आगे सूत्र कहते हैंसाध्यधर्माधारसंदेहापनोदाय गम्यमानस्यापि पक्षस्य वचनम् ॥34॥ सूत्रार्थ साध्य धर्म के आधार का सन्देह दूर करने के लिए गम्यमान अर्थात् जाने हुए भी पक्ष का कथन करना आवश्यक है। 85. अस्तित्वादि साध्य का धर्म होता है, उसका आधार या न्यायसूत्र 5/2/15 12. प्रमेयकमलमार्त्तण्डसार 123
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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