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________________ 3/6-10 21. यदि च स्मृतिविषयस्वभावतया दृश्यमानोर्थः प्रत्यक्षप्रत्ययैरवगम्येत तर्हि स्मृतिविषयः पूर्वस्वभावो वर्तमानतया प्रतिभातीति विपरीतख्याति: सर्वं प्रत्यक्ष स्यात्। अव्यवधानेन प्रतिभासनलक्षणवैशद्याभावाच्च न प्रत्यभिज्ञानं प्रत्यक्षम् इत्यलमतिप्रसङ्गेन। 22. तच्च तदवेदं तत्सदृशं तद्विलक्षणं तत्प्रतियोगीत्यादिप्रकार प्रतिपत्तव्यम्। तदेवोक्तप्रकार प्रत्यभिज्ञानमुदाहरणद्वारेणाखिलजनावबोधार्थ स्पष्टयति यथा स एवायं देवदत्तः ॥6॥* गोसदृशो गवयः ॥7॥ गोविलक्षणो महिषः ॥8॥ इदमस्मादूरम् ॥9॥ 21. यदि दृश्यमान वर्तमान का पदार्थ स्मृति के विषय के स्वभाव रूप से प्रत्यक्ष ज्ञानों द्वारा अवभासित होता है तो स्मृति के विषयभूत पूर्व स्वभाव वर्तमान रूप से अवभासित होना भी मान सकते हैं। इस प्रकार सभी प्रत्यक्ष विपरीत ख्याति रूप हो जायेंगे। अव्यवधान से प्रतिभासित करना रूप वैशद्य का अभाव होने से भी प्रत्यभिज्ञान प्रत्यक्ष-प्रमाण रूप सिद्ध नहीं होता है, अब इस विषय पर इतना ही कहना पर्याप्त है। 22. इस प्रत्यभिज्ञान के वही यह है, यह उसके समान है, यह उससे विलक्षण है, यह उसका प्रतियोगी है, इत्यादि भेद हैं। अब इन्हीं प्रत्यभिज्ञानों के उदाहरण सभी को समझ में आने के लिए दिये जाते हैं यथा स एवायं देवदत्तः ॥6॥ गोसदृशो गवयः ॥7॥ गोविलक्षणो महिषः॥8॥ इदमस्माद् दूरं ॥9॥ सूत्र संख्या 6 से 10 तक परीक्षामुख में सूत्र 6 में ही परिगणित है। प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 85
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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