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चन्द्रांशुशुभ्रयशसं प्रभाचन्द्रकविं स्तुवे।
कृत्वा चन्द्रोदयं येन शश्वदाह्लादितं जगत्॥ (ii) पण्डित कैलाशचन्द्र जी शास्त्री ने अनेक तर्कों के आधार पर उक्त मत का खण्डन किया है। इनके अनुसार प्रभाचन्द्र का समय ई. सन् 950 से 1020 तक का है। __(iii) पण्डित महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य जी ने प्रमेयकमलमार्तण्ड की प्रस्तावना में अनेक पुष्ट प्रमाणों के आधार पर ई. सन् 980 से 1065 ई. तक का समय निर्धारित किया है।
(iv) पण्डित दरबारीलाल कोठिया जी, डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य डॉ. उदयचन्द्र जैन तथा प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी आदि अनेक विद्वानों ने इनका समय ई. सन् की 11वीं शती ही स्वीकृत किया है।
पं. महेन्द्र कुमार जी की विस्तृत प्रस्तावना, पण्डित कैलाशचन्द्र जी की 'जैन न्याय', डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य जी के ग्रन्थ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भाग-3, पृ. 47 से 50, पं. दरबारी लाल कोठिया जी की 'जैन न्याय की भूमिका, डॉ. उदयचन्द जैन जी की 'प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन' तथा प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी जी के निबन्धों के आधार पर मुझे भी आचार्य प्रभाचन्द्र का समय ई. सन् की 11वीं शती ही सही प्रतीत होता है। जब तक अन्य कोई अकाट्य प्रमाण उपलब्ध नहीं होता है तब तक उन्हें 11वीं शती के पूर्व का नहीं माना जा सकता।
रचनाएँ
आचार्य प्रभाचन्द्र अपने समय के न्यायशास्त्र परम्परा के सूर्य के समान तेजस्वी नक्षत्र थे। उनकी विद्वत्ता और पाण्डित्य का सर्वत्र सम्मान था। यद्यपि 'गद्यकथाकोष' को छोड़कर उन्होंने किसी अन्य स्वतन्त्र ग्रन्थों का प्रणयन नहीं किया, प्रायः मूल ग्रन्थों पर टीका-भाष्य आदि ही किया है; किन्तु उनकी व्याख्यायें भी इतनी अधिक विद्वत्तापूर्ण तथा नवीन अनुसन्धानों से ओतप्रोत हैं कि वे मूल ग्रन्थों के समान ही सम्पूर्ण परम्परा में समादृत हैं।