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अहिंसा दर्शन अभिप्रेत है कि सभी विधियाँ समानरूप से लागू की जाएँ। अनुच्छेद 14 से 18 में इस सिद्धान्त को प्रभावी किया गया है।
3. बन्धुता - बन्धुता की भावना विकसित न हो तो अहिंसा के प्रयोग व्यर्थ हैं। बार्कर ने बन्धुता को सहकारिता का सिद्धान्त कहा है। संवैधानिक रूप से इसमें राष्ट्र के सामान्य स्रोत और सेवाओं का सहभागिता से उपभोग करने का अधिकार है। जैसे- शिक्षा, पुलिस, स्वास्थ्य और अन्य सेवाएँ। इसका एक अमूर्त संघटक भी है। एक बन्धुता की भावना, जिससे यह भाईचारा उत्पन्न होता है कि हमें एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए और हम सब मिलकर अपने जीवन को ऊपर उठा सकते हैं।
इसका यह अभिप्राय भी है कि एक ही मातृभूमि के पुत्र होने के नाते सभी नागरिक भाई-भाई हैं, जिन्हें सुख और दुःख में एक-दूसरे का साथ निभाना चाहिए। भाई होने के नाते हम एक साथ जिएँगे और एक साथ मरेंगे। इन भ्रातृगुणों से मिलकर ही राष्ट्र बनता है।
बन्धुता को दो बातों से जोड़ा गया है -
(1) प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा एवं
(2) राष्ट्र की एकता और अखण्डता।
1. मूल अधिकार - मूल अधिकार, नैसर्गिक अधिकार होते हैं; जिसका अपहरण कोई भी राज्य, व्यक्ति से नहीं कर सकता, इसमें भी अहिंसा की भावना है। अनुच्छेद 21 में प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का अधिकार समाहित है। जस्टिस खन्ना ने इसके बारे में कहा था - "संविधान का अनुच्छेद 21 यदि न होता तो भी राज्य को, किसी व्यक्ति को उसके प्राण या स्वतन्त्रता से वञ्चित करने की शक्ति, विधि के विशेष अधिकार के बिना नहीं मिलती। यह सभी सभ्य राष्ट्रों में विधिसम्मत शासन की आवश्यक स्थापना और आधारभूत अवधारणा है।"