________________
76
अहिंसा दर्शन बहुत जिद की तो उनकी माँ उन्हें एक जैन मुनि के दर्शन के लिए ले गईं। गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में इस बात का उल्लेख किया है कि जैन मुनि ने मुझे तीन प्रतिज्ञाएँ दिलवाईं और मैंने जब उन प्रतिज्ञाओं को माना, तभी माँ ने विदेश जाकर पढ़ने हेतु अनुमति दी। वे तीन प्रतिज्ञाएँ थीं
1. कभी माँस नहीं खाऊँगा। 2. कभी मदिरा नहीं पिऊँगा। 3. कभी परस्त्री-संसर्ग नहीं करूँगा।
विदेश-प्रवास के दौरान उन्हें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा। जैसे, माँस-मदिरा के सेवन के लिए अत्यधिक दबाव झेलना पड़ा, किन्तु माँ को दिये वचन का उन्होंने निर्वाह किया। पश्चिमी संस्कृति में स्वयं को समायोजित करने (नृत्य-सङ्गीत-वादन सीखने) के उनके प्रयास असफल रहे। शायद गाँधी के अन्दर विद्यमान भारतीयता ने उनके इस पाश्चात्य चोले को धारण करने के मार्ग में अवरोध उत्पन्न किए और गाँधी के रूप में जो भारतीय इंग्लैण्ड गया था, वह भारतीय रूप में ही वापस आ गया।
तेईस वर्षों तक देश से बाहर रहने के बाद जब गाँधीजी स्वदेश वापस आए, तब भारत में स्वतन्त्रता संग्राम का सूत्रपात हो चुका था। सर ए.
ओ. ह्यूम और सर वेडरवर्न, इण्डियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना कर चुके थे। इस कांग्रेस का प्रयास यह था कि अंग्रेजों का शासन बना रहे और भारत का कोई नुकसान न हो। गाँधीजी ने अंग्रेजी शासन से स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में अनेक मत-मतान्तरों के मध्य कांग्रेस का लक्ष्य 'हिन्द स्वराज' निर्धारित किया। साथ ही अत्यन्त धैर्य के साथ गाँधीजी ने भारत की समस्याओं का अध्ययन किया। गांधी जी का दर्शन
गांधी जी कोई दार्शनिक नहीं थे और न ही उनमें किन्हीं दार्शनिकों जैसे चिन्ह दिखायी देते थे। अपने व्याख्यानों, लेखों, पत्रों और 1. An autobiography 'My experiment with truth'- M.K. Gandhi; Pg-33