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षष्ठ अध्याय
गाँधीदर्शन अहिंसा के प्रयोग तथा भारतीय संविधान
सत्य और अहिंसा के बल पर भारतवर्ष को स्वतन्त्रता दिलाने वाले अहिंसक क्रान्तिकारी मोहनदास करमचन्द गाँधी का जन्म, 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर, गुजरात में हुआ था। पिता करमचन्द गाँधी, पोरबन्दर राज्य के प्रधानमन्त्री, राजस्थानिक कोर के सभासद, राजकोट में दीवान और कुछ समय तक बीकानेर में दीवान पद पर कार्यरत रहे। माँ पुतलीबाई जैन परिवार से थीं। वे धार्मिक प्रवृत्ति की घरेलू महिलारत्न थीं। जैनधर्म को मानने वाले उनके माता-पिता आजीवन सत्यनिष्ठ, अहिंसक और ईमानदार रहे।
विद्यार्थी जीवन के प्रारम्भिक काल में गाँधीजी आदर्श विद्यार्थी नहीं थे। अपने हृष्ट-पुष्ट, ताकतवर व माँसाहारी मित्र के प्रभाव में उन्होंने एकाध बार धूम्रपान व माँसाहार के लिए घर में चोरी भी की, किन्तु इस कार्य से उन्हें आत्म-ग्लानि हुई, फलस्वरूप इस दोष के लिए उन्होंने अपने पिता को एक पत्र लिखा और सन्मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा ली। गाँधीजी का विवाह मात्र 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा के साथ हो गया। सन् 1887 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 18 वर्ष की उम्र में आप अध्ययन हेतु विदेश चले गए।
माँ पुतलीबाई, गाँधीजी को विदेश नहीं जाने देना चाहती थीं। उनका मन्तव्य था कि विदेश जाने पर व्यक्ति का चरित्र नष्ट हो जाता है। गाँधीजी ने
His Parents were followers of the Jain school of Hinduism; which regards Ahimsa; the doctrine of non-injury to any from of life; as on of its basicprincipal. - Mahatma Gandhi, by Romain Rolland; Pg-3