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अहिंसा दर्शन
विश्वयुद्ध कराए, राष्ट्र में अशान्ति फैलाई, समाज में संघर्ष करवाया, परिवार में झगड़े कराये इत्यादि।
हिंसा एक है और उसके कारण असंख्य हैं। कर्म-सिद्धान्त की भाषा में हिंसा या मृत्यु का कारण है - पूर्वकृत कर्मों का विपाक (फल)। विज्ञान की भाषा में हिंसा का कारण है - रासायनिक असन्तुलन। शास्त्रों में कारणों की दृष्टि से हिंसा के अनेक भेद गिनाये हैं -
1. वर्तमान जीवनयापन के लिए की जाने वाली हिंसा, 2. प्रशंसा, सम्मान एवं पूजा के लिए की जाने वाली हिंसा, 3. जन्म-मरण-रोग के प्रसङ्ग में की जाने वाली हिंसा, 4. दुःख-प्रतिकार के लिए की जाने वाली हिंसा। आगम में हिंसा के पन्द्रह कारणों का उल्लेख है -
1. क्रोध, 2. मान, 3. माया, 4. लोभ, 5. हास्य, 7. वैर, 8. रति, 8. अरति, 9. शोक, 10. भोग, 11. अर्थ, 12. कर्म, 13. धर्म, 14. पराधीनता, और 15. मोह।
फिर भी हिंसा के सिर्फ इतने ही कारण नहीं हैं, वे सैंकड़ों या हजारों भी हो सकते हैं।
हिंसा के कारणों की खोज प्रायः बाहर से होती है। बाहर भी हिंसा के कारण हैं किन्तु वे ही अकेले कारण नहीं हैं; हिंसा के कारण बाहर तथा भीतर दोनों तरफ हैं। गरीबी, आर्थिक विषमता, आदि बाह्य कारण भी होते हैं; फिर भी मुख्य कारण है – मानसिकता, यह आन्तरिक कारण है। इनके साथ ही अन्य आन्तरिक कारण भी हैं।
जैसे शरीर के स्तर पर हिंसा के दो आन्तरिक कारण हैं -
1. नाड़ीतन्त्रीय असन्तुलन और 2. रासायनिक असन्तुलन। सूक्ष्मशरीर के स्तर पर भी हिंसा के दो आन्तरिक कारण हैं -