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'जैनधर्म का यह सौभाग्य है कि उसने अहिंसा को केवल अपनी पहचान ही नहीं बताया है, अहिंसा की साधना में व्यक्तिगत, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का सर्वोच्च मूल्य बनाया है।
सुप्रसिद्ध गांधीवादी चिन्तक एवं साहित्यकार यशपाल लिखते
'महावीर से पहले भी अनेक धर्म-प्रवर्तकों तथा महापुरुषों ने अहिंसा के महत्त्व एवं उसकी उपादेयता पर प्रकाश डाला था, लेकिन महावीर ने अहिंसा-तत्त्व की जितनी विस्तृत, सूक्ष्म अथवा गहन-मीमांसा की, उतनी शायद ही और किसी ने की हो। उन्होंने अहिंसा को आत्मिक-उन्नति के सोपानों में प्रथम स्थान पर रखा और उस तत्त्व को चरम सीमा तक पहुँचा दिया। कहना होगा, कि उन्होंने अहिंसा को सैद्धान्तिक-भूमिका पर ही खड़ा नहीं किया, उसे आचरण का अधिष्ठान भी बनाया।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी लिखते हैं
'भगवान् महावीर से बड़ा अहिंसाव्रती कोई नहीं हुआ। उन्होंने विचारों के क्षेत्र में क्रान्तिकारी अहिंसकवृत्ति का प्रवेश कराया
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहिंसा के पुजारी थे। वे जैन साधुओं के सम्पर्क में बचपन से रहे। श्रीमद् राजचन्द्र उनके अनन्य मित्र थे। महात्मा गाँधी कहते हैं
'संसार के किसी भी धर्म ने अहिंसा की इतनी सूक्ष्म और व्यापक-परिभाषा नहीं की है, जितनी जैनधर्म ने की है। उसने इसे विशेष 1. तुलसी प्रज्ञा, जनवरी-मार्च, 2011' विश्वशांति के प्रति जैन धर्म का अवदान',
पृ. 94 2. वर्धमान महावीर स्मृति ग्रन्थ, प्रका. जैनमित्र मंडल, दिल्ली, सन्-2002, पृ. 92
पर लेख 'अहिंसा के आयाम : महावीर और गांधी'। 3. प्राकृत विद्या, वर्ष-13, अंक-2, पृ. 30-39