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सप्तम अध्याय
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श्री अरविन्द जिस आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर थे, उसमें अहिंसा की प्रधानता थी । यही कारण है कि देशभक्ति के जज्बे में स्वतन्त्रता के लिए उन्होंने हिंसकमार्ग की वकालत नहीं की। वे राष्ट्र को एक निर्जीव भूमिखण्ड नहीं, स्वयं जननी का जीवित विग्रह मानते थे। उन्होंने अपनी पत्नी को अंग्रेजी में जो पत्र लिखे, उसमें उनकी राष्ट्रभक्ति और अहिंसकचेतना के स्पष्ट दर्शन होते हैं। 17 फरवरी 1907 को लिखे एक पत्र के एक अंश का हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है -
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. मैं जानता हूँ, इस पवित्र जाति के उद्धार करने का शारीरिक बल मेरे अन्दर नहीं है। तलवार या बन्दूक लेकर मैं युद्ध करने नहीं जा रहा हूँ। तलवार के स्थान पर ज्ञान का एक बल है । ब्रह्म तेज भी एक तेज है । यह तेज, ज्ञान के ऊपर प्रतिष्ठित होता है। यह भाव नया नहीं है; इस भाव को लेकर ही मैंने जन्म ग्रहण किया है। यह भाव मेरी नस-नस में भरा है।.... "
स्वामी विवेकानन्द और अहिंसा
भारतवर्ष में महान् आध्यात्मिक क्रान्तिकारी विचारक स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था । उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था । प्रारम्भ में इनका मूल नाम नरेन्द्रनाथ था। इनके गुरु का नाम श्री रामकृष्ण परमहंस था।
नरेन्द्रनाथ जब श्री रामकृष्ण परमहंस से मिले तो सहसा उन्हें एक महापुरुष मानने को तैयार नहीं थे किन्तु प्राणिमात्र के प्रति श्री रामकृष्ण के निष्काम प्रेम और दयाभाव ने उन्हें उनकी ओर आकृष्ट किया। उन्होंने देखा कि परमहंसजी के संसर्ग से कई लोगों का जीवन पूर्णतया बदल चुका है; अतः उन्होंने परमहंस को अपना गुरु मान लिया।
स्वामी विवेकानन्द ने पूरे भारत का भ्रमण किया और विशेषकर नवयुवकों के अन्दर आध्यात्मिक क्रान्ति का सूत्रपात किया। वे युवा चेतना के मसीहा थे। विवेकानन्द ने अपने विचारों से विदेशियों को भी प्रभावित