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गाथा परम विजय की
कोमलता और कठोरता, दंडनीति और सामनीति इनका यथासमय उपयोग होता है।
जम्बूकुमार ने सोचा मैं राजगृह चला जाऊंगा। रत्नचूल और मृगांक को यहीं रहना है। रत्नचूल शक्तिशाली है। मृगांक उसकी तुलना में कमजोर है। यह वैर का अनुबंध चलता रहेगा। मैंने महावीर से उपशम और मैत्री का पाठ पढ़ा है। मुझे उसका उपयोग करना चाहिए, वैर-विरोध को मिटाना चाहिए। आवेश का उपशम हो, कलह उपशांत बने, वैर-विरोध मिटे। उपशम के सिवाय इसको मिटाने का कोई दूसरा उपाय नहीं है। मुझे जाने से पहले दोनों को मित्र बना देना चाहिए।
चिंतन का कितना अंतर होता है? एक व्यक्ति वैर-विरोध को बढ़ा देता है और एक मिटा देता है। जम्बूकुमार सम्यगदर्शन से संपन्न था इसलिए हर बात सम्यग्दर्शन के आधार पर सोचता था। जैसा दृष्टिकोण होता है वैसा चिंतन होता है। दर्शन के बिना चिंतन चलता नहीं है। मिथ्यादर्शन मिथ्या चिंतन, सम्यग्दर्शन सम्यचिंतन। ___राजसभा में जम्बूकुमार के शौर्य और पराक्रम का अभिनंदन हुआ। राजा मृगांक, विद्याधर व्योमगति ने जम्बूकुमार की सोत्साह वर्धापना की। पूरे राज्य की ओर से आभार व्यक्त किया। ___ जम्बूकुमार ने कहा-'मेरा एक कार्य पूरा हो गया। एक कार्य अभी शेष है। युद्ध समाप्त हो गया है, किन्तु वैर-विरोध का भाव समाप्त नहीं हुआ है। मेरा अभिनंदन सार्थक तब होगा जब वैर-विरोध की आग बुझेगी, मैत्री की सरिता प्रवाहित होगी।'
जम्बूकुमार ने मैत्री की पृष्ठभूमि निर्मित करते हुए कहा-'मैत्री समान धरातल पर होती है। एक सामने बंदी बना बैठा रहे और एक सिंहासन पर आसीन रहे तो मैत्री का वातावरण नहीं बन सकता। मैं चाहता
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