________________
व्योमगति ने कहा——यह कैसे हो सकता है?' वह तत्काल विमान में बैठा और युद्धस्थल में पहुंचा। उसने देखा -युद्ध तो शुरू हो चुका है। अकेला कुमार अनेक सैनिकों से पराक्रम के साथ जूझ रहा है और अजेय बना हुआ है। वह थोड़ा नीचे लाया विमान को, बोला- 'कुमार! आ गया हूं। अब तुम अकेले नहीं हो।'
जम्बूकुमार ने कहा- 'मैं अकेला हूं ही नहीं। मेरे पास महावीर सदा रहते हैं। महावीर मेरे साथ हैं, उनकी शिक्षाएं मेरे साथ हैं। मैं महावीर की वाणी का अनुसरण कर रहा हूं। अगर मैं महावीर की वाणी को नहीं मानता तो अकेला इस सारी सेना को समाप्त कर देता । पर मैं अनावश्यक किसी को मारना नहीं चाहता। मुझ पर जो प्रहार कर रहे हैं, उससे अपनी सुरक्षा कर रहा हूं, मार नहीं रहा हूं। यह सुरक्षात्मक युद्ध है।'
विद्याधर व्योमगति ने तीक्ष्ण कृपाण जम्बूकुमार की ओर बढ़ाते हुए कहा-'कुमार! तुम्हारे हाथ में कोई शस्त्र नहीं है। तुम यह शस्त्र ले लो।'
'मुझे शस्त्र की जरूरत नहीं है। आप शस्त्र अपने पास रखो, मुझे उसकी कोई आवश्यकता नहीं है । मैंने एक निःशस्त्रीकरण का शस्त्र ले लिया, महावीर ने जिसका प्रतिपादन किया। शस्त्र मत बनाओ, शस्त्र का प्रयोग मत करो–इस संकल्प को मैंने स्वीकार कर लिया, अब दूसरे शस्त्र की जरूरत नहीं।'
जिस व्यक्ति के हाथ में अहिंसा का शस्त्र, अभय का शस्त्र, मनोबल और आत्मबल का शस्त्र होता है, उसे दूसरा शस्त्र लेने की कोई जरूरत नहीं पड़ती। शस्त्र कौन लेता है? जो डरता है, वह शस्त्र लेता है। शस्त्र का निर्माण उस व्यक्ति ने किया जिसे डर लगा। जब डर लगा, तब शस्त्र बनाया। आज भी शस्त्र का निर्माण क्यों होता है? एक राष्ट्र सोचता है - वह मुझे हरा नहीं दे। उसके पास जो शस्त्र हैं, उनसे ज्यादा तेज शस्त्र मैं बनाऊं। दूसरा भी यही सोचता है।
अत्थि सत्थं परेण परं—भगवान महावीर का वचन है- एक शस्त्र से दूसरा शस्त्र तेज है। एक डरता है तो तेज शस्त्र बना लेता है। फिर दूसरा उससे तेज बना लेता है। एक राष्ट्र के पास अणुबम है। दूसरा उससे डरता है-कहीं अणुबम का प्रयोग न कर दे। मैं भी अणुबम बनाऊं। इस भय के कारण शस्त्रों का विकास हो रहा है।
जम्बूकुमार ने कहा-'मैंने महावीर का वचन समझा है, मैं महावीर की शरण में हूं। उनके सिद्धांतों को जीने का प्रयत्न कर रहा हूं। मैं शस्त्र का प्रयोग करना नहीं चाहता। मैं शस्त्रों के प्रयोग को समाप्त करना चाहता हूं।'
‘व्योमगति! तुम मेरी चिन्ता इसलिए करते हो कि मैं सम्राट् श्रेणिक की प्रजा हूं, मगध का नागरिक हूं। मेरे प्रति तुम्हारा आकर्षण भी हो गया है। पर चिन्ता की कोई जरूरत नहीं । तुम चले जाओ और अपने शस्त्र भी साथ में ले जाओ।'
व्योमगति कल्पना नहीं कर सका, सोच भी नहीं सका कि इतना अभय कोई हो सकता है? इतना पराक्रमी कोई हो सकता है?
४८
m
गाथा
परम विजय की
W
(