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________________ से लिखे तो भी एक पूर्व लिखा नहीं जा सकता। इतनी बड़ी विशाल ज्ञानराशि, उसका एक मात्र प्रतिनिधित्व कर रहे हैं आचार्य प्रभव। उनका लक्ष्य भी वही है, जो केवली जंबू का था। केवल जंबू और प्रभव का नहीं, प्रत्येक व्यक्ति का लक्ष्य भी यही होता है। हर व्यक्ति विजयश्री का वरण करना चाहता है, किन्तु वे व्यक्ति विरल होते हैं, जो परम विजेता बन एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। केवली जंबू ने किशोर अवस्था में विजय का अभियान शुरू किया, मुनि बनकर परम विजय की साधना की। परम विजेता बन निर्वाण को प्राप्त किया। परम विजय के ज्योति-कण आज भी प्रकाश-रश्मियों का विकिरण कर रहे हैं। क्या हम उन आलोक रश्मियों को देख पा रहे हैं? क्या हम विजय के पथ को पकड़ पा रहे हैं? क्या हम विजय की गाथा को रचने का संकल्प संजो रहे हैं? क्या हम परम विजय के मंत्र की साधना और आराधना के लिए प्रस्तुत हैं? ये प्रश्न हमारे अंतःकरण को उद्वेलित और आंदोलित करें, हमारा जीवन इन प्रश्नों के समाधान की प्रयोगशाला बने....विजय-यात्रा के इस संदेश को हम पढ़ सकें, पकड़ सकें, जी सकें तो हम भी परम धन्यता और कृतार्थता के साथ गुनगुनाएंगे-परम विजय केवल सपना नहीं है, जीवन का अनुभूत सच है। गाथा परम विजय की 400
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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