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गाथा परम विजय की
सर्दी का मौसम था। दो मित्र घूमने निकले। किसी बगीचे में पहुंचे। एक धूप में जाकर बैठ गया और दूसरा पेड़ की छाया में। किसी व्यक्ति ने पूछा तुम दोनों साथ आए। तुम धूप में बैठे हो और वह पेड़ के नीचे बैठा है, ऐसा क्यों? उसने कहा-मुझे पेड़ के नीचे बैठने में बड़ा सुख मिलता है। दूसरे से पूछा-तुम पेड़ के नीचे क्यों नहीं बैठे? उसने कहा-मुझे धूप में बड़ा सुख मिलता है।
प्रतिबिम्ब दो हो गए और बिम्ब एक हो गया। मूल बात है सुख मिलना। यह जरूरी नहीं है कि जिस बात से एक को सुख मिलता है, उसी से दूसरे को भी सुख मिले। किसी को शीतल छाया सुख देती है और किसी को धूप-सेवन। किसी को ठंडे पानी से नहाना अच्छा लगता है और किसी को गर्म पानी से स्नान करना। किसी व्यक्ति को मिठाई खाने में सुख मिलता है और किसी को नमकीन खाना रुचिकर लगता है। कोई व्यक्ति ठण्डा पेय पीना पसंद करता है और कोई व्यक्ति गर्म पेय पीना। इसलिए आधुनिक होटलों में ठण्डा और गर्म-दोनों प्रकार के पेय पदार्थों की व्यवस्था रहती है। हम कितनी ही घटनाएं लें, सबका निष्कर्ष एक ही है-आदमी वही काम करता है, जिसके प्रति उसकी रुचि होती है, आकर्षण होता है। उसे जिस कार्य में सुख मिलता है वह उस में व्याप्त होता है। ___ जम्बूकुमार की रुचि एक दिशा में है और नव परिणीता कन्याओं की रुचि दूसरी दिशा में। एक त्याग में सुख का अनुभव कर रहा है और दूसरा भोग में। जम्बूकुमार कह रहा है-संसार में सुख कहां है? कन्याओं का मंतव्य है-यह शरीर, यह यौवन विषय-भोग के लिए है। इसमें जो सुख मिलता है वह प्रत्यक्ष है। इसके अतिरिक्त जिस सुख की बात कही जा रही है, वह किसने देखा है?
नभसेना ने कहा-'प्रियतम! विषय-भोग शरीर की मांग है, आवश्यकता है। वह सुख की अनुभूति देता है। उसका लाभ है-संतान की उत्पत्ति। उससे वंश-परम्परा अविच्छिन्न रहती है। व्यक्ति का नाम अमर हो
जाता है।'
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