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________________ ___ 'प्रिये! प्यास से व्याकुल वानर को एक जगह कीचड़ दिखाई दिया। प्यास से मरता क्या न करता? उसने प्यास बुझाने के लिए उस कीचड़ को पीया किन्तु प्यास नहीं बुझी। कीचड़ के दुर्गन्धयुक्त पानी से , उसका मुख कसैला हो गया। प्यास से उसका हाल बेहाल हो गया। ____ वह उस कीचड़ में लेट गया। उसे कुछ शीतलता का अनुभव हुआ पर प्यास नहीं मिटी। वह अपने हाथों से कीचड़ उलीच कर अपने शरीर पर मलने लगा। उसे कीचड़ का स्पर्श कुछ सुखद लगा पर प्यास की भयंकरता कम नहीं हुई। ‘प्रिये! क्या शरीर पर कीचड़ मलने से भीतर की प्यास बुझ सकती है?' 'नहीं स्वामी! वह तो पानी पीने से ही बुझेगी।' 'कनकसेना! मध्याह्न का समय हो गया। सूर्य का ताप प्रखर बना। शरीर पर लगा वह कीचड़ सूखने गा। जैसे जैसे कीचड़ सूखता गया, उसके लिए ताप असह्य बन गया। उसने सोचा मैंने कीचड़ लगाकर एर्खता की लेकिन अब क्या हो सकता है। ____ एक ओर प्रबल प्यास, दूसरी ओर सूर्य का प्रखर ताप, तीसरी ओर शरीर पर सूखे हुए कीचड़ से होने गली असह्य वेदना।....प्रिये! वह वानर प्यास से व्याकुल घोर वेदना का अनुभव करता हुआ मृत्यु को प्ति हुआ। ____ जम्बूकुमार ने कनकसेना को प्रतिबोधित करते हुए कहा–'प्रिये! काम-भोग कर्दमलेप के समान हैं। पसे शरीर को कुछ क्षण के लिए सुख मिलता है किन्तु ये भोग मन और आत्मा को कलुषित बना देते हैं। गाथा परम विजय की ह कुछ क्षण का सुख शाश्वत दुःख का कारण बनता है।' ___प्रिये! तुम मेरी बात पर ध्यान दो। तुम इन क्षणिक सुखों में आसक्त मत बनो, जो महान् दुःख देने ले हैं। तुम उन सुखों को पाने का प्रयत्न करो, जिसके साथ दुःख का कोई अनुबंध नहीं है।' प्रिये! तुम गहराई से सोचो यह यौवन, यह प्रवर शक्ति भोग में लीन होकर नष्ट करने के लिए ही है। हम शक्ति को संयम की साधना में लगाएं। शरीर में नहीं, आत्मा में लीन बनें। हमारा यौवन और ारी शक्ति सार्थक बनेगी। हमें वह सुख मिलेगा, जिसके लिए सामान्य मनुष्य ही नहीं, देवता भी तरसते ' यह कहते हुए जम्बूकुमार ने अपने कथन को विराम दे दिया। कनकसेना को जम्बूकुमार के इस सारगर्भित वक्तव्य में जीवन का सार दिखाई देने लगा। वह संबुद्ध गई। उसकी विषयानुरक्ति विरक्ति में परिणत हो गई। उसने जम्बूकुमार के कथन से सहमति व्यक्त करते कहा-'स्वामी! आप जिस पथ पर चरणन्यास कर रहे हैं, वही हमारे लिए प्रेय और श्रेय है।'
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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