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मां ने कहा-कैसे देखोगे?' 'केवली बनकर देखूगा।' 'केवली कैसे बनोगे?'
'मां! मैं मुनि बनूंगा, साधना करूंगा।' __मुनि बनने की बात सुनते ही मां एकदम मूर्छा जैसी स्थिति में आ गई। डॉक्टर ऑपरेशन करते हैं तब पहले एनेस्थेसिया का प्रयोग करते हैं, शून्य बना देते हैं, जिससे पीड़ा न हो। जम्बूकुमार के शब्दों ने एनेस्थेसिया का प्रयोग कर दिया, मां कुछ क्षण के लिए स्तब्ध और अवाक् हो गई। वह भाव विह्वल स्वर में बोली-बेटा! क्या बात कह रहा है? तुम
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साधु बनोगे?'
गाथा परम विजय की
'पुत्र! यह मेरे लिए वज्र संपात जैसा निष्ठुर वचन है। तुमने अचानक यह क्या सोचा?'
अहो पुत्र! किमाख्यातं, वज्रसंपातनिष्ठुरं।
कारणं किमकस्मात् स्यादत्र कार्यनिदर्शने।। _ 'मां! आपने ही अभी कहा था-आत्मा को देखना बहुत अच्छा है। अगर मैं आत्मा को देखू, केवली बनूं तो तुम्हें क्या कठिनाई है? तुम्हें तो खुशी होनी चाहिए।' ___ मां की आंखें छलछला आईं, गला भर आया। भर्राए स्वर में बोली-'नहीं, यह बात छोड़ो। तू इकलौता बेटा है। तू जानता नहीं है, अभी तक समझता नहीं है।'
पुत्र कितना ही समझदार हो पर माता-पिता उसे बच्चा ही समझते हैं। मां बोली-'जात! तुम्हें अभी तक अनुभव नहीं है। अभी तू क्या जानता है? देख, तू एक ही बेटा है। हमने तुम्हें पाला, पोसा, बड़ा किया। इसलिए किया कि बुढ़ापे में हमारी सेवा करे। बुढ़ापा तो आया नहीं, उससे पहले ही जाने की बात कर रहा है। हमारी सारी आशा पर हिमपात, पाला पड़ जाएगा। ऐसा हो नहीं सकता। तुम यह बात छोड़ दो। तुमने जो तत्त्वज्ञान सुना है वह बहुत अच्छी बात है किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम गृहत्यागी बन जाओ।' ___ मां ने धन-वैभव का उपभोग करने की प्रेरणा देते हुए कहा-'जात! तेरे पिता ने कितना धन संचय किया है। आसत्त-कुलवंश-सातवीं पीढ़ी तक भी कोई कमाने की जरूरत नहीं है। खूब खाओ, पीओ, मौज करो।' उस अपार धन को तुम भोगो, काम में लो। बेटा! यह मिनख जनम बार-बार नहीं मिलेगा।'
पुत्र पिता धन संचियो, तिण धन रो घणो विस्तार। सात पीढ़ी खाता खरचता, तो ही न आवै पार।।
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