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मां और बेटा, दोनों बड़ी वैराग्य की बातें करने लगे । जम्बूकुमार तो अभी नई शिक्षा लेकर आया। मां तत्त्व की जानकार श्राविका ।
मां बोली- 'बेटा! तूने तो एक दिन में बहुत सार निकाल लिया, इतना तत्त्व समझ लिया । यह बहुत अच्छा हुआ कि तुम्हारे मन में धर्म के प्रति रुचि जाग गई।'
मां को संतोष मिला। जब व्यक्ति में धर्म की रुचि जागती है, बहुत सारी बुराइयां मिट जाती हैं। अभी-अभी हम प्रवचन में आ रहे थे, आने से पहले एक समझदार चिंतनशील श्राविका ने कहा- 'आज की समस्या पर भी ध्यान देना चाहिए।'
मैंने पूछा—'क्या समस्या है?’
'महाराज! आज तीन बड़ी समस्याएं समाज के सामने विकराल रूप में आ रही हैं। पहली समस्या है - शादी में बहुत आडम्बर होता है। यह उचित नहीं है। विवाह सादगी से होना चाहिए। किन्तु अहंकार इतना प्रबल हो गया है कि हर आदमी प्रदर्शन करना चाहता है। ऐसा लगता है कि धन के उपयोग का सबसे बड़ा क्षेत्र यही बचा है।'
एक भाई ने बताया- मैंने शादी में इतने आइटम किये कि एक आदमी खा भी नहीं सकता और चख भी नहीं सकता। उसने काफी बखान किया।
इस तरह कोई व्यक्ति धन का प्रदर्शन करता है, धन का अहंकार करता है तो उसके प्रति कोई उदात्त भावना नहीं जागती। बात करने का मन भी नहीं होता। मैं उदासीन भाव से सुनता रहा और वह मुग्धभाव से बोलता चला गया। बहुत कुछ कहने के बाद वह मौन हुआ।
मैंने पूछा - 'तुमने इतना सब तो किया, साथ में एक हॉस्पिटल बनाया या नहीं ?'
वह यह सुनकर चौंका, विस्मय के साथ बोला- 'हॉस्पिटल क्यों ?'
मैंने कहा—'व्यक्ति इतना खायेगा तो बीमार अवश्य पड़ेगा फिर वह कहां-कहां भागेगा?'
पहली समस्या है-शादी के समय होने वाला प्रदर्शन।
दूसरी समस्या है-तलाक। थोड़ा सा मूड बिगड़ा, थोड़ी-सी अनबन हुई और तलाक। यह भयंकर बीमारी बन गई है तलाक। एक समय था - शादी को कहते थे पाणिग्रहण। जिसका हाथ पकड़ लिया, उसका साथ जीवनभर निभाना है। एक वह संकल्प था जीवनभर निभाने का और एक आज की स्थिति है।
गुजरात के महाराज जयसिंह के पिता जल्दी चल बसे। बादशाह ने देखा - अच्छा अवसर है। उसने बालक जयसिंह को बुला लिया। पिता सदा टक्कर लेते रहे, बादशाह के अधीन नहीं बने। बादशाह ने बिठाया, बिठाकर हाथ पकड़ा और कहा-'जयसिंह ! बोलो अब तुम मेरे पास में आ गये हो, अब क्या होगा ?' जयसिंह बहुत होशियार थे, बोले- 'जहांपनाह! अब क्या होगा ? पति अपनी स्त्री का एक हाथ पकड़ता है तो उसे भी वह जीवनभर निभाता है। आपने तो मेरे दोनों हाथ पकड़ लिये। अब मुझे क्या चिंता है ? '
आज यह तलाक की समस्या भयंकर बन रही है। साथ रहने का संकल्प और संबंध तिनके जैसा हो गया है। टूट जाये तो कोई चिन्ता की बात नहीं ।
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गाथा
परम विजय की
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