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धम्मकहा 031
(९) यमपाल चाण्डाल की कथा सुरम्य देश में पोदनपुर नगर में राजा महाबल निवास करते थे नंदीश्वरपर्व की अष्टमी के दिन राजा ने घोषणा की कि राज्य में आठ दिन तक किसी के द्वारा भी जीव का घात न किया जाये। राजा का एक बल नाम का पुत्र था वह मांस भक्षण में अनुराग करता था। यहाँ पर कोई भी नहीं देख रहा है इस प्रकार का विचार करके उद्यान में उसने एक मेष का (भैंसे का) घात करके उसको पकाकरके खा लिया। राजा ने जब मेष के मरण का समाचार सुना तब वह बहुत कुद्ध हुआ। किसने यह मेष मार | दिया? इस प्रकार की गवेषणा की गई। उस उद्यान का माली उस समय पर वृक्ष के ऊपर बैठा था उसने देखा कि यह मेष राजकुमार ने मारा है। माली रात्रि में ही यह वृत्तांत अपनी स्त्री को कहता है। गूढ से गुप्तचर पुरुष ने वह वृत्तांत सुनकरके राजा से कह दिया। मेरी आज्ञा मेरा पुत्र भी नहीं मानता है इस क्रुद्ध हुए राजा ने आदेश दिया कि उस बल के नौ टुकड़े कर देना चाहिए।
तदनन्तर उस बलकुमार का घात करने के लिए चण्डाल के घर में राजपुरुष गए। उस राजपुरुष को देखकर के चण्डाल अपनी स्त्री को कहता है-'मैं यहाँ नहीं हूँ', इस प्रकार से कह देना। ऐसा कहकरके वह घर के कौने में छुपकरके बैठ गया। जब राजपुरुष उस चण्डाल को बुलाते हैं तब उसकी स्त्री कहती है-'आज वह गाँव गया है। वे पुरुष कहते हैं-'बेचारा दुर्भागी, आज ही गाँव गया। राजकुमार के घात से प्राप्त हुए स्वर्ण-रत्न आदि के लाभ से वह वंचित हो गया। धन के लोभ से वह स्त्री इशारे से संकेत कर देती है जिससे वे राजपुरुष घर से पकड़कर के राजा के समक्ष ले जाते हैं। राजा के समक्ष भी चाण्डाल कहता हैआज चतुर्दशी का दिन है, मैं जीव का घात नहीं करूँगा। इस प्रकार का मेरा संकल्प है। तुमने कब संकल्प ग्रहण किया? इस प्रकार के पूछने पर वह कहता है-एक बार मुझको काले सर्प ने डस लिया था। मेरा मरण हो गया है इस प्रकार सोचकर के सब लोग मुझे श्मसान ले गये। वहाँ पर सौषधि ऋद्धि के धारक एक मुनिराज विराजमान थे। उनके शरीर की हवा से मैं पुनः जीवित हो गया। उसी समय पर मैंने चतुर्दशी के दिन जीव घात न करने का नियम ग्रहण कर लिया था। अस्पर्श चाण्डाल के भी क्या व्रत होते हैं? इस प्रकार का विचार करके रुष्ट हुए राजा ने कहा- बल के साथ इसको भी बाँधकर शिशुमार तालाब में फेंक दो। राजा की आज्ञा से वैसा ही किया गया। बल का मरण उस तालाब में स्थित मत्स्यों के द्वारा हो गया किन्तु चाण्डाल की व्रत की महिमा से जल देवताओं ने रक्षा की। उसी समय पर जल के ऊपर आकाश में सिंहासन पर स्थित होता हुआ, मणिमय मण्डप से सहित, दुंदुभि शब्दों से पूजित हुआ, साधुकार-साधुकार इस प्रकार के शब्दों से प्रशंसित होता हुआ वह चाण्डाल शोभा को प्राप्त होता है। उसके समाचार को जानकर के राजा ने भी उसको सम्मानित किया और यह स्पर्श के योग्य विशिष्ट पुरुष है, इस प्रकार से घोषित कर दिया।
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