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धम्मकहा 023
(७) विष्णुकुमार मुनिकी कथा अवंतिदेश में उज्जयनी नगरी में राजा श्रीवर्मा राज्य करते थे। उनके बिल, बृहस्पति, प्रहलाद और नमुचि ये चार मंत्री थे। एक बार वहाँ दिव्यज्ञानी अकम्पनाचार्य सात सौ मुनियों के साथ राज्य के बाहर उद्यान में आकर के ठहर गये। अकम्पनाचार्य ने आदेश दिया कि राजा आदि का आगमन हो तो परस्पर में उनके साथ कोई वार्तालाप न करे अन्यथा संघ का नाश होगा। इधर राजा अपने धवलगृह के ऊपर बैठा हुआ अनेक नागरिकजनों के हाथों में पूजा सामग्री को ग्रहण करके ले जाते हुए देखकर मंत्री को पूछता है-ये लोग कहाँ जा रहे हैं? मंत्री ने कहा-नगर के बाहर उद्यान में अनेक नग्न साधु स्थित हैं, उनके दर्शन करने के लिए ये जा रहे हैं। राजा कहता है-हम लोगों को भी वहाँ दर्शन के लि चलना है। इस प्रकार से कहकर के राजा दर्शन के लिए वहाँ पहुँचा। समस्त मुनियों के प्रत्येक की वंदना राजा के द्वारा की गई परन्तु किसी ने भी आशीर्वाद प्रदान नहीं किया। ये साधु अत्यन्त निस्पृह हैं इस भाव से प्रस्थान के समय पर राजा ने मंत्रियों को कहा। मंत्री राजा को कहते हैं-'ये सभी बलिवर्ध और मूर्ख हैं इसलिए छल से मौन ग्रहण करके बैठे हैं। इस प्रकार के वार्तालाप से मंत्री के साथ जाते हुए राजा एक श्रुतसागर मुनि को देखते हैं। उनमें से एक मूर्ख उदर भरकर के समक्ष आ रहा है' इस प्रकार मंत्री कहते हैं। मुनिराज के साथ वे वाद-विवाद के द्वारा वे कलह करते हैं। चर्या से आये हुए मुनि गुरु आज्ञा को नहीं जानते हुए वाद से मंत्रियों को हरा देते हैं। मुनिराज से समस्त समाचार गुरुमहाराज के समक्ष निवेदन किया। अकम्पनाचार्य ने कहा-तुम्हारे कारण से सर्वसंघ के ऊपर उपसर्ग होगा इसलिए आज उसी वाद के स्थान पर जाकर रात्रि में कायोत्सर्ग करना चाहिए। गुरु की आज्ञा से वह मुनि वहीं पर कायोत्सर्ग से स्थित हो गये। हारे हुए वे मंत्री लज्जा और क्रोध से भरे हुए रात्रि में संघ का विनाश करने के लिए निकले। रास्ते में कायोत्सर्ग से स्थित उन मुनि को देखकर के विचार करते हैंजिसने मेरा पराभव किया उसका घात तो अवश्य करना चाहिए। वे चारों एक साथ उन मुनिराज के घात करने के लिए तलवार से वार करते हैं। उसी समय पर नगर देवता का आसन कम्पित हुआ जिससे वे चारों उसी अवस्था में कीलित हो गये। प्रातः सभी लोगों ने जब उन लोगों को कीलित देखा तब सर्वत्र कोलाहल हो गया बाद में वे छोड़ दिये गये। राजा उनकी दुष्ट चेष्टाओं को जानकर के गधे पर बिठाकर नगर से बाहर निकाल देता है।
तदनन्तर कुरुजांगल देश के हस्तिनागपुर नगर में राजा महापद्म निवास करते थे। उनकी रानी लक्ष्मीमती के दो पुत्र पद्म और विष्णु थे। कालांतर में राजा महापद्म पद्म पुत्र के लिए राज्य समर्पित करके विष्णु पुत्र के साथ श्रुतसागरचंद्र नामक आचार्य के पास मुनि हो गये। वे बलि आदि मंत्री कालान्तर में पद्म राजा के मंत्री हो गये। उस समय पर कुंभपुर के दुर्ग में राजा सिंहबल रहता था। वह अपने दुर्ग के बल से पद्म राजा देश में समय-समय पर उपद्रव करता रहता था। पद्म राजा उपद्रव की चिंता से दुर्बल हो गये। बलि ने दुर्बलता का कारण पूछा। राजा ने समस्त घटित हुआ वृत्तांत कह दिया। उसको सुनकर राजाज्ञा से बलि सिंहबल के पास गया। अपने बुद्धि के महात्म्य से दुर्ग को खण्डित करके सिंहबल को पकड़कर के वह वापिस लौट आया। यही वह सिंहबल है इस प्रकार से कहकर के पद्म राजा को समर्पित कर दिया। संतुष्ट होकर राजा ने कहा-अपना इच्छित वर माँग लो। बलि ने कहा-जब मागूंगा तब प्रदान कर देना।
तदनन्तर कुछ दिनों के बाद में अनेक नगर और ग्रामों के बिहार करते हुए अकम्पनाचार्य सात सौ मुनियों के साथ