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भक्ति योग” भगवान् कृष्ण के भक्ति योग से सहमत है ? और यदि नही तो वह दरबार से दखल किये जाते हैं । दरबार दखल का मतलब होता है सीधा सीधा देश द्रोह । जैन धर्म के विद्द्वान सिखों की भांति बहादुर नही थे । इसलिए जैन विद्वान अकबर के प्रशन का उत्तर नही में नही दे पाए और राज से दखल होने के भय से जैन विद्वानों ने अकबर बादशाह को आश्वासन दिया कि वे देवी देवताओं -भगवान में विश्वास करते है और यही से जैन धर्म का साहित्य तथा मन्त्र अपनी ज्ञान गरिमा खो कर देवी ब्राम्हणों द्वारा प्रेरित भक्ति भाव से देवताओं से वरदान / मागने का उपक्रम बन गये । उदहारणतः
जैन महा मन्त्र णमोकार जैन धर्म का दो पदों वाला णमोकार महामंत्र आत्म चेतना प्रदाता साधक को सूक्ष्म लोक सूर्य यात्रा की शक्ति प्रदाता शब्द शक्ति का अनुपम ज्ञान भी मुगल काल की कट्टरता के प्रभाव में देवो देवताओं साधू संतो को नमस्कार करने का मन्त्र बन गया । वर्तमान में हो रहे सभी णमोकार महामंत्र के आयोजन मुग़ल काल काल में लिखे गए जो सर्वथा अज्ञानता - से भरपुर है जिनपर मुग़ल काल की क्रूरता का छाया है । विस्तरत जानकारी हेतु हमारा लेख " महामंत्र णमोकार पढ़े ।
देव दर्शन स्तोत्र जैन धर्म का देव दर्शन स्तोत्र विशुद्ध साक्षात् देव- सूर्य देव दर्शन का विज्ञान दिव्य ज्ञान - दिव्य शक्ति प्राप्त करने का क्रिया योग मुगल काल की कट्टरता के प्रभाव में मन्दिर में जाकर प्रीतिमा दर्शन के साथ अर्घ चढाने की किर्या बन गई ।
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जिसे आज श्री हीरा रत्न माणिक्य सुन गजिंग के नाम से प्रचार प्रसार कर रहे है वह विज्ञान वर्तमान में प्रचलित मन्दिर में जाकर पाषण मूर्तियों का दर्शन करने की प्रथाए मुगल काल में शरू की गई थी । जो आज भी प्रचलित है । जबकि मंदिर में जाकर देव दर्शन से दिव्य शक्तिया - जीवन उर्जा नही मिलती । अधिक जानकारी हेतु ---देव दर्शन लेख पढ़े
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भक्तामर स्तोत्र : मुग़ल काल से पूर्व आचार्य मानतुंग ने जैन धर्म का ससार भुत का खुलासा राजा भोज के दरबार में एक विचित्र परिस्थिति में भक्तामर स्तोत्र के माध्यम से किया था I जैन धर्म एक अतिशय ज्ञान है जाओ आत्म चेतन कर जीवात्मा को दिव्य ज्ञान दिव्य शक्ति प्राप्त प्रदाता है | आज इस विज्ञान का हिंदी रूपान्तर जो मुग़ल के जैन दरबारियों द्वारा किया गया उसमे जैन धरम का सच्चा ज्ञान प्राय विलुप्त है और आज भक्तामर स्तोत्र भक्ति भाव से