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अफगानिस्तान में उस समय अहिंसक बौद्धों की निष्क्रियता ने बहुत नुकसान पहुंचाया क्योंकि इसी के चलते मुहम्मद के गाजियों के लश्कर भारत के अंदर घुस पाए. जहाँ जहाँ तक बौद्धों का प्रभाव था, वहाँ पूरी की पूरी आबादी या तो मुसलमान बना दी गयी या काट दी गयी. । जहां हिंदुओं ने प्रतिरोध किया, वहाँ न तो गाजियों की अधिक चली और न अल्लाह की. यही कारण है कि सिंध के पूर्व भाग में आज भी हिंदू बहुसंख्यक हैं । क्योंकि सिंध के पूर्व में राजपूत, जाट, आदि वीर जातियों ने इस्लाम को उस रूप में बढ़ने से रोक दिया जिस रूप में वह इराक, ईरान, मिस्र, अफगानिस्तान और सिंध के पश्चिम तक फैला था , अर्थात वहाँ की पुरानी संस्कृति को मिटा कर केवल इस्लाम में ही रंग दिया गया पर भारत में ऐसा नहीं हो सका, पर बीच बीच में लुटेरे आते गए और देश को लूटते गए. तैमूरलंग ने कत्लेआम करने के नए आयाम स्थापित किये।
संत कबीर :संत कबीर का जन्म ऐसे समय में हुआ , जब भारतीय समाज और धर्म का स्वरुप अधंकारमय हो रहा था। भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक अवस्थाएँ सोचनीय हो गयी थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की धमारंधता से जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी और दूसरी तरफ हिंदूओं के कर्मकांडों, विधानों एवं पाखंडों से धर्म- बल का ह्रास हो रहा था। जनता के भीतर भक्ति- भावनाओं का सम्यक प्रचार नहीं हो रहा था। सिद्धों के पाखंडपूर्ण वचन , समाज में वासना को प्रश्रय दे रहे थे। नाथपंथियों के अलखनिरंजन में लोगों का ऋदय रम नहीं रहा था। ज्ञान और भक्ति दोनों तत्व केवल ऊपर के कुछ धनी- मनी , पढ़े-लिखे की बपौती के रुप में दिखाई दे रहा था। ऐसे नाजुक समय में एक बड़े एवं भारी समन्वयकारी महात्मा की आवश्यकता समाज को थी, जो राम और रहीम के नाम पर आज्ञानतावश लड़ने वाले लोगों को सच्चा रास्ता दिखा सके। ऐसे ही संघर्ष के समय में, मस्तमौला कबीर का प्रार्दुभाव हुआ।
अकबर और जैन धर्म: बादशाह अकबर शुरू में कुछ समय जैन धर्म से अति प्रभावित रहा और उसने श्वेताम्बर जैन साधू से जैन धर्म सारभूत ज्ञान "देव दर्शन - सूर्य साधना में योग को अपनाया था तथा योग करने हेतु सूर्य के १०० नाम कंठस्थ याद किये थे । परन्तु अकबर की विलासता तथा भक्ति दर्शन के उपासक हिन्दू ब्राम्हणों - तथा मुगलों के प्रभाव में जैन धर्म का सांख्य योग " अहम ब्रहम्स्मी” ज्यादा दिन प्रभावी नही रहा । इसके साथ साथ भोगवादी ब्राम्हण समाज शुरू से ही जैन पद्धति का विरोधी रहा है और उनकी निति हमेश चाटुकार रही है इसलिए भोगवादी क्रष्ण भक्ति के प्रभाव में अकबर ने जैन विद्वानो विचारकों से पूछा की क्या वह