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પિંડવિશુદ્ધિપ્રકરણ
भणियं च पंचमंगे, सुपत्तसुद्धन्नदाणचउभंगे । पढमो सुद्धो बीए भयणा, सेसा अणिट्ठफला ॥२२॥ देसाणुचियं बहुदव्वं, अप्पकुलमायरो य तो पुच्छे । कस्स कए केण कयं?, लक्खिज्जइ बज्झलिंगेहिं ॥२३॥ थोवं ति न पुटुं, न कहियं गूढेहिं नायरो व कओ। इय छलिओ न लग्गइ, सुउवउत्तो असढभावो ॥२४॥ आहाकम्मपरिणओ, बज्झइ लिंगि व्व सुद्धभोई वि । सुद्धं गवेसमाणो, सुज्झइ खवग व्व कम्मे वि ॥२५॥ नणु मुणिणा जं न कयं, न कारियं नाणुमोइयं तं से। गिहिणा कडमाययओ, तिगरणसुद्धस्स को दोसो ? ॥२६॥ सच्चं तह वि मुणंतो, गिण्हंतो वद्धए पसंगं से । निद्धंधसो य गिद्धो, न मुयइ सजियं पि सो पच्छा ॥२७॥ उद्देसियमोहविभागओ य, ओहे सए जमारंभे । भिक्खाउ कइ वि कप्पड़, जो एही तस्स दाणट्ठा ॥२८॥ बारसविहं विभागे, चहुद्दिढ कडं च कम्मं च । उद्देससमुद्देसादेससमाएसभेएण ॥२९॥ जावंतियसमुद्देसं, पासंडीणं भवे समुद्देसं । समणाणं आएसं, निग्गंथाणं समाएसं ॥३०॥ संखडि भुत्तुव्वरियं, चउण्हमुद्दिसइ जं तमुद्दिढं । वंजणमीसाइ कडं, तमग्गितवियाइ पुण कम्मं ॥३१॥ उग्गमकोडिकणेण वि, असुइलवेणं व जुत्तमसणाई। सुद्धं पि होइ पूई, तं सुहुमं बायरं ति दुहा ॥३२॥