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शिक्षाप्रद कहानियां
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शब्दों ने व्यक्ति के विवेक को जगा दिया। तब उस व्यक्ति ने पत्नी का विधिवत संस्कार किया और अपने घर लौट गया।
५६. कर्म ही आवरण है
एक व्यक्ति था। उसे एक बार मालूम हुआ कि गंगा किनारे रहने वाले एक साधु के पास एक पारसमणि है। पारसमणि को प्राप्त करने की इच्छा से वह व्यक्ति साधु की सेवा करने लगा। एक दिन अवसर देखकर उसने अपनी इच्छा साधु को बतला दी। यह सुनकर साधु ने कहा- मैं अभी गंगा स्नान करने जा रहा हूँ वापस आकर मैं तुम्हें पारसमणि दूँगा। लेकिन व्यक्ति के मन में पारसमणि के लिए आकुलता बढ़ गयी वह सोचने लगा पता नहीं साधु पारसमणि देगें या नहीं। उसने उनकी अनुपस्थिति में सारी झोपड़ी छान डाली, लेकिन उसको पारसमणि कहीं भी नहीं मिली और अंत में परेशान होकर बैठ गया ।
साधु वापस आये उन्होंने सब कुछ जान लिया और कहने लगे'क्या इतना भी धैर्य नहीं है तुम्हारे अंदर ।' पारसमणि तो उस डिबिया में रखी है। ऐसा कहकर उन्होंने एक डिबिया नीचे उतारी । वह डिबिया लोहे की थी। व्यक्ति सोचने लगा इस पारसमणि ने डिबिया को सोने की क्यों नहीं बनाया? क्या यह पारसमणि नकली है? साधु से पूछा कि यह डिबिया पारसमणि का स्पर्श पाकर भी लोहे की क्यों रह गयी, सोने की क्यों नहीं हुई ? तब साधु ने उसे बताया कि वह पारसमणि एक मोटे वस्त्र में लपेट कर रखी हुई है। वह आवरण युक्त होने से डिबिया सोने की नहीं बन पायी। इसी प्रकार हमारी आत्मा हमारे अन्दर ही है पर, कर्मरूपी आवरण होने के कारण वह हमें दिखाई नहीं देती।
५७. भगवान् कहाँ हैं?
एक बार भगवान् ने अपनी सभा के सभी सदस्यों को एकत्र करके एक समस्या रखी। भगवान् ने कहा- 'मैं एक समस्या से बड़ा परेशान हूँ वह समस्या यह है कि ये जो मनुष्य है ये मुझे कहीं भी शान्ति