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शिक्षाप्रद कहानिया तुम तो अभी बीस वर्ष के ही हुए हो। अतः जुट जाओ आज से ही विद्या अध्ययन में। और मोटेराम ने किया भी यही, लग गया दिन-रात पढ़ने। अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और रुचि के कारण उसने शीघ्र ही इतनी योग्यता प्राप्त कर ली की वह एक विख्यात दार्शनिक बन गया। दूर-दूर से लोग अपनी समस्याओं का समाधान और अपने बच्चों तथा स्वयं को पढ़ाने के लिए उससे निवेदन करने लगे।
५५. मोह मार्जन एक व्यक्ति अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था। उसके मोह में वह मधुमक्खी की तरह लिप्त था। दैवयोग से एक दिन उसकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया। व्यक्ति उस विछोह का सहन नहीं कर पा रहा था। वह पत्नी की शव यात्रा में विलाप करते हुए कहने लगा, 'तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता, अब मैं भी तुम्हारे साथ चिता में जलकर प्राण त्याग दूंगा। उस व्यक्ति पर उसके गुरु की बहुत कृपा दृष्टि थी जब उन्होंने यह सब देखा तो मन-ही मन में सोचने लगे कि किस प्रकार इसको समझाया जाए। तुरन्त ही उनके मन में एक युक्ति उत्पन्न हुई। वे हाथों में एक मटका लेकर शव यात्रा में शामिल हो गए और शमशान जा पहुँचे जैसे ही लोगों ने उसकी पत्नी के शव को चिता पर रखा तो गुरुजी ने अचानक मटका जमीन पर पटक दिया। मटका टूटकर चकनाचूर हो गया। वे जोर-जोर से विलाप करने लगे।
__ अपने गुरुदेव का विलाप सुनते ही वह व्यक्ति उनके पास पहुँचा और कहने लगा, 'गुरुजी आप क्यों विलाप कर रहे हैं? आप तो इस संसार के मायाजाल से विरक्त हैं। आज आपको रोना क्यों पड़ रहा है?
अब गुरुजी ने उत्तर दिया, 'देख नहीं रहे हो, मेरा मटका हाथ से गिरकर टूट गया इसलिए रो रहा हूँ। तब वह व्यक्ति बोला- 'आप जैसे विरक्त व्यक्ति मिट्टी का मटका टूट जाने पर विलाप करें यह उचित नहीं है। तब गुरुजी ने कहा- 'मैं तो केवल रो रहा हूँ, तुम तो पंच तत्त्वों से बने शरीर के निष्प्राण होने पर प्राण देने पर उतारू हो।' गुरुजी के