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शिक्षाप्रद कहानिया मुर्गीवाला मुर्गियों के साथ दिखाई दिया और मोटेराम उससे बोला- 'ले लो बकरी, पेट की बड़ी। जो खाए थोड़ा, दे दो मुर्गो का जोड़ा।' और मुर्गीवाले ने तुरन्त दे दी मुर्गी और ले ली बकरी।।
इधर मुर्गियां मल-मूत्र में चोंच मारने लगी, तो मोटेराम को बड़ा बुरा लगा। तभी संयोग से उधर से एक तोते वाला आ निकला। मोटेराम ने तुरन्त उससे पुछा- 'क्यों भाई तोते वाले, तेरे तोते मल-मुत्र तो नहीं खाते'। तोते वाला बोला- 'अरे! कैसी बात करते हो? ये तो विशुद्ध शाकाहारी प्राणी हैं, केवल फल-सब्जियां खाते हैं।' यह सुनकर मोटेराम बोला- 'तो तुम यह मुर्गियों का जोड़ा ले लो और तोतों का जोड़ा मुझे दे दो।' अब मोटेराम बड़ा खुश था। लेकिन, यह क्या? अभी वह कुछ ही दूर गया था कि उसके हाथों से तोते उड़ गए। और बेचारा मोटेराम हताश-निराश खाली हाथ अपने घर पहुंचा। इसलिए कहा जाता है कि
अनेकसंशयोच्छेदि, परोक्षार्थस्य दर्शकम्। सर्वस्य लोचनं शास्त्रं, यस्य नास्त्यन्ध एव स॥
अर्थात् अनेक सन्देहों का नाशक, परोक्ष वस्तु का दर्शक, सबका नेत्र स्वरूप शास्त्रज्ञान (विद्या) जिसके पास नहीं है वह अन्धे के समान
घर पहुँचकर मोटेराम ने सारी राम कहानी पिता को सुनाई उसकी कहानी सुनकर पिता बोले- 'बेटा, मैने तुम्हें बचपन में बहुत समझाया था कि पढ़ लो। लेकिन, तुम थे कि मानते ही नहीं थे। अब तुम्हें आभास हो रहा होगा कि विद्या का कितना महत्त्व होता है- जीवन में।'
यह सुनकर मोटेराम बोला- 'आप ठीक कह रहे हैं पिता जी! क्या मैं अब भी पढ़ सकता हूँ? अब मेरी समझ में आ गया है- विद्या का महत्त्व।'
पिता जी बोले- क्यों नहीं? विद्या का अध्ययन तो कभी भी किया जा सकता है बस यह निर्भर करता है व्यक्ति की रुचि पर। और