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बात तो आपने ठीक बस अब काम बनगया। सांप भी मर कही मंत्रीजी। हम जायेगा और लाठी भी न टूटेगी। शेर कलही उसे शेर का का रूप वह बना न सकेगा और उसकी रूपधरने के लिये सारी कीर्ति मिट्टी में मिल जायेगी।
कहेंगे। ठीक है कुंवर साहब, जसाआप उचित समझें।
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अगले दिन-राजदरबार ब्रह्मगुलाल,तुमने तो कमाल कर में राजा, मंत्री,राजकुमार ररवा है। चारों ओर तुम्हारा हीनाम। आदि सभी बैठे हैं... बच्चे क्या,बडे, बूढ़े, स्त्री-पुरुष
सभी तो तुम्हारी कला पर मुग्ध है। हम तुमसे बहुत प्रसन्न है।)
राजन.मै किस योग्य हैं। आपकी ही तो कृपा है, आपका
ही तो आशीर्वाद है। जो कुछ भी आज मैं हूँ सब आपकी
बदौलत
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राजदरबार में ही..
पिताजी वाकईब्रह्मगुलाल की कला कमाल की है। आज तो मेरी इच्छा है कि हम ब्रह्मगुलाल को शेर के रूप में देखें
बेटा।
जैसी तुम्हारी इच्छा
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