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एक दिन द्रोपदी बन कर आया- क्या अभिनय है द्रोपदी का | बस साक्षात दोपदी ही तो है। द्रोपदी का चीरहरणका दृश्य- वही मुख, वही मुद्रा,वही भय,वही लज्जा, कमाल है। लोगों ने देरवानदंग रह गये- कला भी धन्य हो गई।
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एक दिन लोगों ने देखा राम, सीता, लक्ष्मण वन को जा रहे हैं-देखते रह गये इस दृश्य
को
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राम लक्ष्मण के बीच में कौन हैयह-सीता कमालका रूप-चेहरा-मोहरा बिल्कुलवही-पति भक्तिका साक्षात प्रदर्शन-वाहबलगुलाल, तेरी कला मामूली नहीं-सजीव है यह। जो
वेष धारण करता है उसी रूप होजाता है।
माता पिताको यह सब सुहाता तो था परन्तु सहन नहीं होता क्योंकि समाज में इसको जघन्य कार्य समझा जाताकुलीन घरों के योग्य नहीं। एक दिन पिता जी को कहना
हीपड़ा,
पिताजी, में मजबूर हूँ। कैसे छोडूं.। मेरी रंगरंग में यह समा गया है। मुझे इसके बिना चैन भी तो नहीं पड़ती। करूं तो क्या करूं?
बेटा, जो तुम करते हो कुछ ठीक नहीं। प्रशंसा मिलती है ठीक है, परन्तु हमारे घर के योग्य यह काम नहीं। छोड़ दो
इसे