SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाजशास्त्र में हिंसा के दो रूप बन जाते हैं, नैतिक और अनैतिक आवश्यक हिंसा विरोध और उद्योग जनित समाज में अपरिहार्य है इसे समाज शास्त्रियों ने नैतिक रूप दिया है। अनैतिक हिंसा समाज के लिए अभिशाप है, यह समाज को विशृंखलित करती है। वास्तविक दृष्टि से किसी प्रकार भी हिंसा नैतिक नहीं हो सकती। जीवन का लक्ष्य यह होना चाहिए कि स्वार्थमयी प्रवृत्ति कम से कम हो। व्यक्ति जीवन में उन प्रवृत्तियों को अपनाये, जिन प्रवृत्तियों में स्वार्थ साधन की भावना स्वल्प रहती है। 6 सहदेव की विचारधारा और आगे की ओर बढ़ी और वह गम्भीर विचारों में निमग्न होते हुआ सोचने लगा 100000000 कन्या का विवाह समान धर्मी के साथ करने में सबसे बड़ा हेतु सांस्कृतिक उत्थान का है। असमान धर्मियों के बीच स्थायी प्रेम नहीं हो सकता। दोनों में निरन्तर कलह होता रहता है। आजकल लोग भौतिकता को महत्त्व देते हैं, जिसका परिणाम अशान्ति, संघर्ष और दिन-रात कष्ट उठाना है। जीवन को केवल भौतिक साधनों का कारण मानना पतन है। धनलिप्सा में अंधा व्यक्ति येनकेन प्रकारेण वैभव का अम्बार खड़ा करने में जुटा रहता है। exer (b) ( इस अत्यधिक आसक्ति ने इसके विवेक में कुण्ठा पैदा कर दी है। सत् सहदेव के पास महेश्वर ने आकर प्रार्थना की कि असत् नापने में उसे अर्थ के अतिरिक्त अन्य मापदण्ड नहीं दिखता। पूँजीवादी मनोवृत्ति जहाँ एक ओर मानव के वैयक्तिक और पारिवारिक जीवन को विघटन करती है, वहाँ दूसरी ओर भाई-भाई को खून का प्यासा भी बना देती है। पिता-पुत्र के बीच वैमनस्य और रोष की भयावह दरार पैदा हो जाती है। यह जीवन कोई वास्तविक जीवन नहीं जहाँ व्यक्ति अर्थ कीट बन दिन रात अर्थ से चिपटा रहता है जीवनोत्थान के लिए समानधर्मी साथी का मिलना अत्यावश्यक है। 100000 मेरे साथ नर्मदा सुंदरी का विवाह कर दिया जाय। पक्ष प्रेय की भभूत
SR No.033234
Book TitlePrey Ki Bhabhut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy