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पाँच वर्ष की अवस्था होते ही कन्या का विद्यारम्भ नर्मदा सुंदरी जब वयस्क हुई तो उसके रूप सौन्दर्य कायश सुनकर अनेक संस्कार सम्पन्न किया गया। प्रतिभा शालिनी बालिका||श्रेष्ठि पुत्र आने लगे । सहदेव ने निश्चय किया किअध्ययन में विशेषरूचि लेती थी। नर्मदा के कन्या का विवाह समान धर्मी के साथ ही होना चाहिए। क्षणभंगुर सुख के लिए अध्यापिका-अध्यापक उसकी प्रशंसा करते हुए एक धर्म बेचना ठीक नहीं। जो माता-पिता अपनी कन्या का विवाह किसी प्रलोभन विलक्षण बुद्धि मती मानते थे। सुवर्ण के समान उसका वश असमानधर्मी के साथ कर देते हैं। वे धर्म के रहस्य से अनभिज्ञ हैं। जन स्वरूप सौन्दर्य था और सरस्वती के तुल्य बुद्धि। मानस दो प्रकार की विचार धाराओं में विभक्त है। कुछ लोग अध्यात्म और
अहिंसा की चर्चा करते हैं और कुछ भौतिकवाद और हिंसा की। अहिंसक व्यक्ति का आचरण परम पवित्र होता है, वह अपनी इन्द्रियों का निग्रह करता है। अहिंसा द्वारा सयंम के जीवन का विकास होता है और हिंसा के द्वारा भोगवाद का।
भोगप-भोग की प्रचुर सामग्री और सुविधा प्राप्त करने के लिए व्यक्ति संग्रह और शोषण की ओर बढ़ता है, साथ ही जहाँ भोग वासना को जीवन का लक्ष्य मान लिया जाता है, वहाँ व्यक्ति सदाचार, सचाई और ईमानदारी का उलंघन करते समय जरा भी नहीं हिचकिचाता। क्योंकि उसका मन वास्तविकता, सदाचार आदि सदगुणों में नहीं लगता। उसे वास्तविकता विषय वासना में मिलती है। यह मानव का बहुत बड़ा वैचारिक पतन है। बुराईयों की ओर बिन रूके लुढ़कने की यह वह फिसलन है जो व्यक्ति को अवनति के रसातल तक ले जाये बिना नहीं छोड़ती। व्यक्ति का भोगवाद और सुविधावाद में फंसना ही हिंसक विचार है। विषय वासना और भोग लोलुपता ऐसी दुष्प्रवृत्तियाँ हैं जिनका निकाल फेंकना व्यक्ति के लिए अनिवार्य है। जो सुख अहिंसा, सत्य,शील, सदाचार जैसे गुणों की प्राप्ति में है, वह भोग और वासना में कदापि नहीं। हिंसा में जितनी बुरी प्रवृत्तियाँ है, सभी सम्मिलित हैं-राग-द्वेष और स्वार्थमयी प्रवृत्तियाँ हिंसा हैं। वह सूक्ष्म हो या स्थूल, टालने योग्य हों या अनिवार्य, आवश्यक हो या अनावश्यक, समाज राजतंत्र और अर्थ नीति से सम्मत हो या असम्मत, हिंसा है।
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जैन चित्रकथा