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________________ इस वर्णन को सुनकर महेश्वर सोचने लगा। क्या मेरी पत्नी पुंश्चली है, जो इस व्यक्ति की गुह्य बातों को भी जानती है? इस प्रकार परस्पर मधुआलाप करते हुए कई दिन व्यतीत हो गये। जलयान अपनी गति से समुद्र की छाती को चीरता हुआ बढ़ रहा था। एक दिन मध्यरात्रि के समय कोई व्यक्ति मनोहर स्वर पूर्वक का गाना गा रहा था। उसका स्वर सुनकर महेश्वर ने नर्मदा से पूछा भू -स्वामिन्! मैं स्वर के आधार पर इसके रूप नर्मदे! तुम इसके रूप का वर्णन कर का विश्लेषण कर सकती हूँ। यह श्याम सकती हो। कितना मधु स्वर है, इस वर्ण का है, पर स्त्री लम्पट है तथा युवतियों मधुर स्वर के अनुसार इसका रूप के मन को चुराने वाला है। इसके गुह्य भी अदभुत होना चाहिए। स्थान में प्रवाल के समान मस्सा भी है। 300-DH 1000000 it. उसने प्रत्यक्ष गुरुमुख से मैंने शास्त्रों का अध्ययन किया है उन महेश्वर को नर्मदा के उक्त कथन से संतोष नहीं हुआ। उसके मन रूप से शास्त्रों में बताया गया है कि स्वर के अनुसार व्यक्ति में आशंका प्रविष्ट हो गयी और वह सोचने लगापूछा-प्रिये! के रूप और आकृति का निर्धारण किस प्रकार जब तक किसी व्यक्ति के साथ किसी रमणी का विशेष सम्पर्क न तुम इसके किया जा सकता है। स्वर और आकृति में कार्य स्वरूप को करण सम्बन्ध है, अतः जिसे कार्य-करण सम्बन्ध हो, तब तक वह उसके गुह्य स्थान के मस्से की बात कैसे जान कैसे जानती की जानकारी रहती है, वह स्वर से आकृति और सकती है, अवश्य ही मेरी स्त्री पुंश्चली है। इस व्यक्ति की समस्त बातें मालूम हैं। अतः सम्भव है कि इसके साथ इसका अनुचित आकृति से स्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। सम्बन्ध हो । संसार में समस्त रहस्यों को जाना जा सकता है, पर महिला हृदय को जानना कठिन है। यह हृदय तो इतना रहस्यपूर्ण है कि बड़े-बड़े ज्ञानी भी नारी के समक्ष अपने को अज्ञानी समझते हैं। हो। 00 JJJILIL 000000000000 जैन चित्रकथा
SR No.033234
Book TitlePrey Ki Bhabhut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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