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________________ सुन्दरी! समुद्र अत्यन्त भीषण है । इसमें चलने पर यान महेश्वदत्त के उक्त कथन को सुनते ही नर्मदा रोने लगी।'नारीणां सकुशल पहुँच सकेगा कि नहीं, यह आशंका की बात रोदनं बलम् ' प्रसिद्ध है । जब अनुरोध और प्रार्थना से कार्य नहीं हो है । अत: तुम्हारा साथ चलना किसी प्रकार उपयुक्त नहीं| सकता है, तो रो धोकर ही अपना कार्य कराती है। महेश्वर से है । साथ चलने के दुराग्रह को छोड़ दो, हठ करने से नर्मदा का रोना नहीं देखा गया। नर्मदा के आंसुओं ने उसके हृदय किसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता। को पिघला दिया और उसे कहना पड़ा- चलो साथ, जो सुख दु:ख होगा, साथ-साथ भोगा जायेगा । तुम्हारे स्नेह को ठुकरा कर जाना साधारण बात नहीं है। AAG 0000pcodi अधिक समय के लिए भोजन-पान की व्यवस्था कर ली गयी। यान को लंगरों से वेष्ठित कर दिया गया। जलयान के लंगर खोल दिये । पाल तान दिये और जलयान समुद्र की लहरों के साथ क्रीड़ा करने लगा। यान की गति तेजी से बढ़ रही थी और नाना प्रकार के मगरमच्छ और घड़ियालों के साथ उसका संघर्ष होता जा रहा था । समुद्र की भीषणता को देखकर नर्मदा ने कहास्वामिन समुद्र की भीषणता के कारण ही आचार्यों ने संसार की उपमा समद्र से दी है। नगर, वन, पर्वत. देवी! भय मत करो, मेरे पास सहित पृथ्वी कहां चली गयी? क्या रवि, शशि और नक्षत्र आदि भी जलचर है, जो जल में डूबते है. स्थित होकर इस अपूर्व निकलते हैं। इतना विराट समुद्र अभी तक नहीं देखा था, यहाँ तो जल राशि के अतिरिक्त अन्य कुछ भी समुद्र का अवलोकन करो। दिखलाई नहीं पड़ता। oppobaap प्रेय की भभूत
SR No.033234
Book TitlePrey Ki Bhabhut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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