SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वह अत्यन्त व्याकुल हो गया, खाना- तब एक चपलवेग नामके विद्याधर | महीने भर बाद एक दिन सेवक ने कहा वन का मतंग पीना, सोना, खेलना सब छोड़ कर को राजा जनक को लाने भेजा।। गज आया है, सो उपद्रव कर रहा है। तब उस मायावी सीता के चित्र को सामने रख कर,|| वह विचित्र घोड़े का रूप बनाकर घोड़े पर सवार हो राजा हाथी को रोकने चला सो सीता-सीता यूं रट लगाने लगा। जनकपुर गया राजा ने सोचा - | वह आकाश में राजा को ले उड़ा। पूरे नगर में यह सब जान कर माता-पिता बहुत हाहा कार मच गया। किसी का घोड़ा तुड़ाकर आ गया। चिंतित हुए। पिता ने कुमार को समझाया - हे पुत्र ! तुम स्थिर चित्त होवो, खाना पिना मत छोड़ो। जो कन्या तुम्हारे मन में बसी है, तुझे शीघ्र ही परणाऊंगा। उन्होंने उसे अश्वशाला में बंधवा दिया। वह अश्व रूपधारी विद्याधर पवन समान वेग से राजा किस सुनना चाहते हो तो सुनो- मेरी मिथिलापुरी जो धन धान्य को रथनपुर ले गया। वहां उसका भव्य स्वागत किया| लिए सम्पन्न है, जिस पर अर्धबर्बर देश के म्लेच्छ राजा ने गया। वहा कराजा चद्गात न जनक स सम्मान सहित उनको लूटने के लिए आक्रमण किया। मेरे और म्लेच्छों में महायुद्ध भेंट की कुशल क्षेम पूछ कर राजा चंद्रगति ने कहा- देनी हुआ। उस समय श्रीराम ने आकर मेरी और मेरे भाई की तुम्हारी पुत्री महाशुभलक्षण तब राजा जनक ने कहा सहायता की। उन देव दुर्जय म्लेच्छों को राम लक्ष्मण ने है, मैंने ऐसा सुना है। सो मार भगाया। राम लक्ष्मण ने मेरा ऐसा उपकार किया। तो तुमने जो कही सो सब मेरे पुत्र भामण्डल को देवो। प्रति उपकार स्वरूप मेरी पुत्री मैंने श्रीराम को देनी विचारीयोग्य है, परन्तु मेरी पुत्री. तुमसे सम्बन्ध पाकर मैं राजादशरथ के पुत्र श्रीराम अपना सौभाग्य समझूगा। को देनी करी है। Ace AAYION जैन चित्रकथा
SR No.033226
Book TitleJanak Nandini Sita
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy