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________________ ऐसे महापराक्रमी श्रीराम की कथा नारद कहते |शील संयुक्त हृदय नारद सीता को देखने |नारद भी पीछे महल में जाने लगा, ही रहते हैं। राम का यश सुनकर नारद जी के लिए उनके भवन आया। उस समय सीता द्वारपालों ने रोक दिया। शोरगुल आश्चर्य चकित हो गये। राजा जनक का|दर्पण में मख देख रही थी। नारद की जटा। सुनकर शस्त्रधारी प्रहरी आ गये। जानकी श्रीराम को देने का विचार सुन दर्पण में दिखाई दी। भय कर कम्पायमान हो नारद डर कर आकाश मार्ग से कर सोचने लगे- कैसी है जानकी ? महल के भीतर भाग गई। ho कैलाश पर्वत चला गया। समस्त पृथ्वी पर जिसकी महिमा प्रकट ANILI है। एक बार सीता को देखू तो सही वह कैसी शोभायमान है ? JITOR (dotthd वहां बैठ कर विचारने लगा - मैं सरल स्वभाव उपवन में भामण्डल अपने साथियों सहित खेलने आया हुआ था। |वे चित्र उसके समीप डाल कर खुद पास में कहीं छिप गया। श्रीराम के अनुराग के कारण उसे देखने के | भामण्डल को पता नहीं था कि यह मेरी बहिन का चित्र है। लिए गया। यम समान दुष्ट मनुष्य मुझे पकड़ने | चित्र देख कर मोहित हो गया। उसकी विक्षिप्त सी स्थिती हो को आये। अच्छा हुआ पकड़ा न गया। अब वह |गयी। तब नारद ने कुमारों को व्याकुल जान उन्हे दर्शन दिया। पापिनी मेरे आगे कहां बचेगी ? जहां-जहां जाए उसे कष्ट में हे देव ! कहो यह ये मिथिला के राजा जनक की पुत्री डालूं। किसकी कन्या का सीता है। हे कुमार, ये कन्या तुम्हारे रूप है? तुमने योग्य है। कहां देखा है ? SA LA ऐसा विचार कर शीघ्र ही वैताडय की दक्षिण श्रेणी बीच जो रथनुपुर नगर है वहां गया। महासुन्दर सीता का चित्र ले गया। ये कहकर नारद जी आकाश मार्ग से विहार कर गये। जनक नन्दनी सीता
SR No.033226
Book TitleJanak Nandini Sita
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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