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________________ कहां वे रंक म्लेच्छ और कहां उनके राजा दशरथ के बड़े पुत्र श्रीराम जिन्हे पदम जीतने की बड़ाई? इसमें राम का कहिए। दीप्ति और कीर्ति जिनकी सूर्य और कौन सा पराक्रम है। जिनकी इतनी चन्द्रमा से बढ़कर है। जिनका छोटा भाई | बड़ाई कर रहे हो। तुम्हारी बात सुन लक्ष्मण जिनके धनुष की टंकार सुनकर शत्रु| हसी आती है, जैसे बालक को थर-थर कांपने लगते हैं। तम विद्याधरों को विषफल भी अमृत लगता है। दरिद्र उनसे अधिक बताते हो, कौवे भी आकाश में| को बेर भी अच्छे लगते हैं। कौवों उड़ते हैं, उनमें क्या गुण है? भूमिगोचरियों | को सूखे पेड़ भी अच्छे लगते हैं। में भगवान तीर्थंकर उपजे हैं, उन्हें इन्द्रादिक यह स्वभाव ही है। अब तुम उनका देव भूमि पर मस्तक टेक कर नमस्कार करते खोटा सम्बंध तजकर विद्याधरों के हैं। विद्याधरों की क्या बात है? राजा चंद्रगति से सम्बंध करो। हे भूमिगोचरियों के नाथ। तुम राम लक्ष्मण का इतना प्रभाव बता रहे हो। बेकार बड़ी-बड़ी| बातें कर रहे हो। तुम्हे हमारे बल पराक्रम का पता नहीं है, इसलिए हम कह रहे हैं। सुनो- एक वजावर्त, दूसरा सागरावर्त ये दो धनुष, वे दोनो भाई चढावें तो हम उनकी शक्ति मान लें अन्यथा हम बल पूर्वक कन्या को यहां ले आवेंगे। तुम देखते रहोगे। यह बात प्रमाण है। CHAKKE OXI तब राजा जनक ने मिथिलापुरी आकर आयुधशाला में वे धनुष|परवश होकर मैंने यह बात प्रमाण करदी। वो दोनों स्थापित किये- राजा उदास रहने लगे, रानी के पूछने पर बताया- धनुष यहां लाये हैं, बाहर आयुधशाला में रखे हैं। वह मायावी घोड़ा मुझे विजया गिरी में ले गया। वहां रथनुपुर के ये धनुष इन्द्र से भी न चढाये जाये। कदाचित राजा चंद्रगति से मेरा मिलना हुआ। उन्होने कहा तुम्हारी पुत्री मेरे पुत्र श्रीराम धनुष को नहीं चढापायें तो विद्याधर मेरी को देवो। मैंने कहा मैं तो दशरथ पुत्र श्रीराम को देनी कर चुका हूँ।। पुत्री को बलपूर्वक ले जावेंगे। तब वाने कही जो रामचंद्र वजावर्त धनुष को चढावे तो तुम्हारी पुत्रि परणे अन्यथा मेरा पुत्र परणेगा। जनक नन्दनी सीता
SR No.033226
Book TitleJanak Nandini Sita
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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