________________
ये सब वृतान्त सुन कर महाराज दशरथ चलने को उद्यत हुए। श्री राम तब कमल नयन श्रीराम ने कहा - को बुलाकर राज्य देना चाहा। सब मंत्री आये, सब सेवक आये। यह
हे तात् ऐसे शत्रु पर इतना परिश्रम क्यों? राज्याभिषेक का आडम्बर देख कर श्रीराम ने महाराज दशरथ जी से पूछा
| वे पशु समान दुरात्मा जिनसे संभाषण करना हे प्रभो ! ये EV 57// हे भद्र ! तुम इस पृथ्वी की प्रति | ||उचित नहीं। उनके सन्मुख युद्ध की अभिलाषा सब क्या
पालना करो। मैं प्रजा की रक्षा के||कर आप कहां पधारें? चूहों के उपद्रव पर हो रहा है ?
लिए दुर्जय शत्रु सेना से लड़ने जाहस्ती कहां क्रोध करें और रूई को भस्म करने रहा है।
के लिए अग्नि कहां परिश्रम करें? उनका सामना करने की मुझे आज्ञा दीजिए, यही उचित है।
(
e
VUUUDI
यह सुनकर महाराज दशरथ ने श्रीराम को हर्षित होकर छाती| ||श्रीराम के वचन सुन महाराज दशरथ अत्यन्त प्रसन्न से लगा लिया और कहा - एक चिन्गारी विशाल वन को।
हुए, रोमान्चित हो कर सोचने लगे . हे पदम! कमल नयन भस्म कर सकती है। छोटी बड़ी || जो महापराक्रमी त्यागादि व्रत के धारण वाले क्षत्री जिनकी तुम सुकुमार बालक अवस्था से क्या फर्क पड़ता है।
| यही रीति है- जो प्रजा की रक्षा के लिए अपने दुष्टों को कैसे जीत
उगता ही बालसूर्य
| प्राणों की बाजी लगा देते हैं। | पाओगे ?
घोर अंधकार नष्ट कर देता है। वैसे
ही हम बालक उन दुष्टों को मार भगायेंगे
महाराज दशरथ से विदा होकर श्रीराम ने लक्ष्मण व सेना सहित शत्रु का मुकाबला करने के लिए प्रस्थान किया -
जनक नन्दनी सीता