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चन्द्रमा से बढकर उज्जवल बदन, पल्लव समान कोमल आरक्त हथेलियां, महाश्याम, महासुन्दर, इन्द्रनील मणि समान है केशराशियां । मदभरी हंसनी की सी चाल, सुन्दर भी है और अनमोल श्री के पुष्प समान मुख की सुगन्ध । अति कोमल पुष्पमाला समान भुजाएं, केहरी के समान लचीली कमर आंगन के साथ क्रीडा कर रही है इनके रूप गुण देखकर राजा जनक विचार करने लगे
जैसे रति कामदेव ही के योग्य है, पुत्र जो राम है, उन्हीं के योग्य हैं प्रकट होती है।
बैतादय पर्वत के दक्षिण भाग और कैलाश पर्वत के उत्तर भाग में अनेक अंतर देश बसे हैं उनमें एक अर्धबरवर देश है जहां असंयमी महामूढ जन निर्दयी म्लेच्छ लोग भरे हुए हैं। वहां पर मयूर माल नाम के नगर में महाभयानक अंतरगत नामक म्लेच्छ राजा जो महापापी दुष्टों का नायक, महा निर्दयी बहुत बड़ी सेना सहित जनक का देश उजाड़ने के लिए आ धमका।
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जैन चित्रकथा
वैसे यह कन्या सर्वविज्ञान युक्त दशरथ के बड़े सूर्य की किरणों के योग से कमलिनी की शोभा
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महापुण्याधिकारी जो श्री रामचन्द्र तिनका सुयश देखिये, जिस कारण से महाबुद्धिमान ने राम को अपनी कन्या देने का विचार किया।
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राजा जनक के अयोध्या अपने दूत भेजे। जिन्होने अयोध्या नरेश महाराज दशरथ को सारा वृतान्त बताया।
म्लेच्छ राजा ने आक्रमण किया है। सब धरती को उजाड़ रहा है, अनेक आर्यदेश विध्वंश कर दिये। प्रजा नष्ट हो रही है। उसकी महाभयानक सेना का सामना हम नही कर पा रहे हैं। प्रजा की रक्षा करने से ही धर्म की रक्षा होगी। यह पृथ्वी आपकी है और यह राज्य भी आपका है, यहां की प्रतिपालना अब आप का कर्त्तव्य है।
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