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________________ अद्भुत बालक को पाकर रानी बहुत प्रसन्न हुई। दूसरे दिन राजा ने पुत्र जन्म का उत्सव मनाया। रत्न के कुण्डल की किरणों से मण्डित्त पुत्र बालक प्रभामण्डल का माता-पिता द्वारा राजसी ठाट बाट से पालन पोषण होने लगा। 9600 उधर मिथिलापुरी में राजा जनक की रानी विदेहा पुत्र का हरण जान विलाप करने लगी। अत्यन्त ऊंचे स्वर में रूदन किया। समस्त परिवार में शोक व्याप्त हो गया। 2 SOOCOPAL प्रभा मण्डल के गये का शोक भुलाने के लिए महामनोहर जानकी की बाललीला से सब बन्धु लोगों ने आनन्द उत्पन्न होने लगा। अत्यन्त हर्षित होकर महल की स्त्रियां उसे गोद में खिलाती। अपने शरीर की कान्ति से दशों दिशाओं को प्रकाशित करती हुई वृद्धि को प्राप्त हुई। तब महाराज जनक आये, रानी को धैर्य बंधाते बोलेहुए हे प्रिये, तुम शोक मत करो। तुम्हारा पुत्र जीवित है। किसी ने हरण किया है। तुम निश्चित रूप से उसे देखोगी। - कमल की कली से नेत्र, महा सुकंठ, प्रसन्न बदन मानो साक्षात, श्रीदेवी ही आई हैं। सर्वगुण सम्पन्न, समस्त लोक सुख दाता, अत्यन्त मनोहर सुन्दर लक्षण संयुक्त, भुमि के समान क्षमा की धारणहारी इसलिए जगत में सीता नाम से प्रसिद्ध हुई । ०५३ 00 जनक नन्दनी सीता
SR No.033226
Book TitleJanak Nandini Sita
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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