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इसी तरह आपके पिता अतिबल के बाबा सहस्रबल भी अपने पत्र शतबल के लिए राज्य देकर नग्न दिगम्बर मुनि हो गये थे एवं कठिन तपस्या से आत्मशुद्धि कर शुक्ल ध्यान के प्रताप से मोक्ष स्थान को प्राप्त हुए थे।
एक दिन स्वयबुद्ध मंत्री अकृत्रिम चैत्यालयों की वंदना करने के लिए। मेरू पर्वत पर गये एवं वहां समस्त चैत्यालयों के दर्शन कर अपने आप को पुण्यशाली मानते हुए सोमनस वन में बैठे ही थे कि इतने में उन्हें पूर्व विदेह क्षेत्र के अन्तर्गत कच्छ देश के अनिष्ट नामक नगर से आए हुए दो मुनिराज दिखाई पड़े। हे नाथ हमारी अलका हे मंत्री ! राजा महाबल भव्य है, क्यों की नगरी में विद्याधरों का भव्य ही तुम्हारे वचनों में विश्वास कर सकता अधिपति जो महाबल है। तुम्हें राजा महाबल श्रद्धा की दृष्टि से नाम का राजा राज्य देखते हैं। वह दशमें भव में ऋषभनाथ नाम करता है। वह भव्य का पहला तीर्थंकर होगा सकल सुरेन्द्र उसकी है या अभव्य?
सेवा करेंगें। समस्त प्राणियों का कल्याण
करके स्वयं भी मुक्त हो जायेगा।
ये कथाएं प्राय: सभी लोगों को परिचित एवं अनुभूत थी, इसलिए स्वयंबुद्ध |मंत्री की बात पर किसी को अविश्वास नहीं हुआ। राजा एवं प्रजा ने स्वयंबुद्ध का खूब सत्कार किया। महामति आदि तीन मन्त्रियों के उपदेश से जो कुछ विभ्रम फैल गया था, वह स्वयंबुद्ध के उपदेश से दूर हो गया। इस तरह राजा महाबल की वर्षगांठ का उत्सव हर्षध्वनि के साथ समाप्त
अब मैं राजा महाबल के पूर्व भव का वर्णन करता हूँ जिसमें कि पूर्व भव की अतृप्त वासना से राजा महाबल अब भी रात दिन भोगों में लीन रहते। इसने धर्म का बीज बोया था। पश्चिम विदेह के गन्धिल देश में | राजा महाबल का पूर्वभव सुनने के बाद मुनि राजा आदित्यमति ने स्वयंबुद्धि सिंहपुर नगर में किसी समय राजा श्रीषेण राज्य करते थे। उनकी मंत्रि से कहा कि आज राजा महाबल ने स्वप्न देखा है कि मुझे सम्भिन्नमति रानी का नाम सुन्दरी था। उनके जय वर्मा व श्री वर्मा नाम के दो। आदि मन्त्रियों ने जबरदस्ती कीचड़ में गिरा दिया है। फिर स्वयंबुद्ध मंत्री ने उन पुत्र थे। उनमें श्री वर्मा छोटा पुत्र सभी को प्यारा था। राजा ने प्रजा
दुष्टों को धमका कर मुझे कीचड़ से निकाल कर सोने के सिंहासन पर बैठाकर के आग्रह से लघुपुत्र श्रीवर्मा को राज्य दे दिया। स्वयं धर्म ध्यान में |
निर्मल जल से नहलाया तथा एक दीपक की शिखा प्रतिक्षण क्षीण हो रही है।। लीन हो गये। ज्येष्ठ पुत्र जयवर्मा को अपना यह अपमान सहा नही गया। इसलिए वह दिगम्बर मुनि बन कर उग्र तप करने लगा। एक
राजा अवश्य पूछेगा तुम पहले ही बता देना कि दिन आकाश मार्ग से विहार करता हुआ विद्याधरों का राजा जा
पहले स्वप्न से आपका सौभाग्य प्रकट होता है। रहा था।
दूसरे से आपकी आयु एक माह शेष रह गयी ज्ञात काश ! मैं भी राजा होता
होती है। ऐसा करने से तुम पर उसका विश्वास तो शान से विचरता!
दृढ़ हो जायेगा, तब तुम उसे जो भी हित का मार्ग
बताओगे उसे वह शीघ्र मान लेगा।
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R राजा बनने की अभिलाषा ने फिर धर दबाया । जयवर्मा राज भोगों की कल्पना से मग्न हो रहे थे। इधर सांप ने उन्हे डस लिया।
इतना बताकर दोनो मुनि विहार कर गये मंत्री नगर में लौट आया।
जैन चित्रकथा