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हे नरेन्द्र ! कुछ समय पूर्व आपके इसी वंश में दण्ड नाम के राज | मर कर वे अपने भण्डार में विशालकाय अजगर हुए। वह अजगर मणि मली के हो गये हैं, जिन्होंने अपने प्रचण्ड पराक्रम से समस्त विद्याधरों को | सिवाय भण्डार में किसी दूसरे को नही आने देता था। एक दिन मणिमाली ने वश में कर लिया था। यद्यपि राजा दण्ड शरीर से वृद्ध हो गये थे तथापि इस अजगर का हाल किसी मुनिराज से कहा। मुनिराज ने अवधिज्ञान से उनका मन वृद्ध नहीं हुआ था। उनके मणिमाली नाम का आज्ञाकारी
जानकर कहा कि यह अजगर आपके पिता राजा दण्ड का जीव है। आर्तध्यान पुत्र था। पुत्र को राज्य का भार सौंपकर स्वयं अन्तःपुर मैं ही रहने लगे
के कारण उन्हें यह कुयोनि प्राप्त हुई है। यह सुनकर मणिमाली झट से भण्डार एवं अनेक तरह के भोग भोगने लगे। किसी संक्लेश भाव से राजा दण्ड
गृह में गया एवं वहां अजगर के सामने बैठकर उसे इस ढंग से समझाने लगा, का मरण हो गया।
जिससे उसे अपने पूर्व भव का स्मरण हो गया एवं विषयों की लालसा छूट गई! बैरभाव छोड़ दिया अन्त में सन्यास पूर्वक मरकर देव पर्याय पाई।
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अजगर ने सन्यास पूर्वक मरण से देवपर्याय पाई। राजन् आपके बाबा शतदल भी चिरकाल तक राज्य सुख भोगने के बाद आप के
पिता राजा अतिबल को राज्य प्रदान कर धर्म-ध्यान करने लगे थे एवं आयु के स्वर्ग से आकर देव ने मणीमाली
अन्त में समाधि पूर्वक शरीर त्याग कर महेन्द्र स्वर्ग में देव हुए थे। आपको भी के गले में एक सुन्दर हार पहनाया
ध्यान होगा कि जब हम दोनो मेरू पर्वत पर नन्दन वन में क्रीडारत्न थे। तब देव था जो आज भी आपकी ग्रीवा में |
शरीरधारी आपके बाबा ने कहा था। जैन धर्म को कभी नहीं भूलना यही सब शोभायमान हो रहा है।
सूखों का कारण है।
सच है विषयों की अभिलाषा से मनुष्य अनेक प्रकार के कष्ट उठाते हैं। विषयों के त्याग से स्वर्ग आदि का सुख पाते हैं।
चौबीस तीर्थकर भाग-1