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और सेठानी पहुंच गई मुनिराज यशोभद्र केपास
महाराज ! मैं किस मुंह से कहूँ। मेरा एक ही पुत्र । भद्रे! हमने यहां है यदि उसने आपके वचन सुन लिये,आपके चातुर्मास योग दर्शन कर लिये तो वह तपस्वी बन जायेगा। धारण कर
मै कहीं की नहीं रहूंगी । मुझे लिया है। अब किलना क्लेश होगा सोच हमयहां से भी नहीं सकती।
अन्यत्र नहीं शायद उस आर्तध्यान
जासकते। में मेरी मृत्युहीन हो जाये। अत: आप कृपा करके यहां से चले जाइये और कहीं जाकर
ठहर जाइये।
चातुर्मास पूर्ण होने का दिन- कार्तिक कृष्ण अमावस्या- चौथे प्रहर का समय मुनिराज यशोभद्र ने जान लियाकि अब तो सुकुमाल निदासे जाग गया है | उसे संबोधते हए वह जोर जोर से पाठ करने लगे ।
अधोलोक, मध्यलोक व उर्वलोक में कहीं भी तोसुख नहीं है। नरकों के दुखों को सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते है। भरव, प्यास,सर्दी,गर्मी की असह्य वेदना यह वहां सहताहै तिर्यञ्च तथा मनुष्यगति के दुख तो सर्व विदित ही हैं और स्वर्गा में भी अपार मानसिक वेदना) देखो-अच्युत स्वर्ग के पागुल्म विमान में पदानाभ देव की विभूति का क्या ? ठिकाना था । इतनी विभूति से भी उसे
तृप्ति नहीं मिली।
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