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अच्छा
क्या खूब? वाह रे सुकुमाल । कमालं है तेरी कोमलता को । ऐसा सुकुमार मैंने कभी नहीं
देखा।
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राजन! यह तुच्छ भेंट स्वीकार कीजियेगा। आपके पधारने का बहुत बहुत धन्यवाद । फिर भी कभी पधारकर इस
कुटियाको पवित्र करने की कृपा
कीजियेगा।
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हाय विधाता! अब क्या करूँ ?
चातुर्मास ग्रहण करने का दिन-पहुंचगये। सुकमाल के महल के पास बगीचे में बने जिन मन्दिर में, सुकुमाल के मामा यशोभद्र जो मुनि होगये थे और जिन्होंने अपने ज्ञान से जान लिया था कि सुकमाल की आयु बहुत थोड़ी रह गई हैं अतः किसी प्रकार उसको कल्याण मार्ग में लगाना ही चाहिए। सेठानीजी गजब होगया। एक नया साधु जिन मन्दिर में आकर बैठ गये हैं, क्या कर अब उन्हें कैसे निकालूं ?