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अकाल की रेखाएँ /6 | गोवर्द्धनाचार्य, भद्रबाहु को अन्य शिष्यों के साथ जङ्गल में पढ़ाने लगे। ॐ नमः सिद्धेभ्यः।
ॐ नमः सिद्धेभ्यः।
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| धीरे-धीरे भद्रबाहु ने धर्म, दर्शन, न्याय-व्याकरण, साहित्य आदि विषयों के ग्रन्थ पढ़ लिये। (बताओ, ज्योतिष शास्त्र का सार क्या है? जीव के पाप-पुण्यमय भावों व कर्मसिद्धान्त
की सिद्धि तथा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्धों
की प्रसिद्धि र
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वाह ! भद्रबाहु तो समस्त विद्याओं में इतने शीघ्र पारङ्गत हो गये।
/हाँ मुनिवर! पर आप जानते नहीं, मनुष्य चाहे कितना) भी सूक्ष्मदर्शी नेत्रवाला क्यों न हो, पर रोशनी तो
उसे चाहिए ही।
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