________________
अकाल की रेखाएँ/7
हाँ भाई! इतना होने पर भी योग्यता
तो उसकी अपनी ही थी।
| समझा! इसी तरह भद्रबाहु भी तीक्ष्ण बुद्धिवाला ही क्यों न हो, तो भी गुरु के उपदेशरूपी वचनामृतों की/ रोशनी के निमित्त से ही उसने सब विद्याएँ व्यवस्थितरूप से पढ़ी हैं।
95305
समस्त विद्याओं में पारङ्गत होकर एक दिन भद्रबाहु ने अपने गुरु से कहा - ( गुरुदेव! आपकी कृपा से मुझे उत्तम शिक्षा - हाँ! हाँ! क्यों नहीं? तुम सानन्द जा मिली, आपका महान उपकार है..., अब यदि
सकते हो। तुम्हारा कल्याण हो। आज्ञा दें तो अपने माता-पिता के पास....
12000
MANO
WOMA
और भद्रबाहु अपने घर आ गया...
वाह ! मेरा पुत्र अब कितना जवान हो गया है।
और कितना सुन्दर प्यारा... प्यारा...