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अकाल की रेखाएँ । 5 योग्य सेवा करने के लिए अत्यन्त आग्रह करने पर मुनिराज बोले - |
अरे सोम शर्मा ! तुम्हारा यह प्रिय पुत्र /गुरुदेव! योग्य पुत्र पर उत्तम गुरु का प्रथम महाभाग्यशाली व समस्त विद्याओं में
अधिकार है और फिर आप जैसे श्रेष्ठ पारङ्गत होगा, अतः उत्तम शिक्षा हेतु हमारे दिगम्बर गुरु तो विशेष भाग्य से मिलते हैं। ___ साथ में रहे तो श्रेष्ठ है।
आप इसे अवश्य ले जावें।
सोमश्री को चुप देख मुनिराज उधर देखते हैं... तो... हे भगवन् ! आपकी इच्छा ही मेरा सद्भाग्य है। माता-पिता तो हर जन्म में सभी को मिलते ही हैं, पर उत्तम गुरु नहीं, गुरुदेव! आज तो मेरी कोख
सफल हो गयी।
तुम दोनों को धर्मप्राप्ति हो।। धन्य है तुम्हारा गृहस्थ जीवन!
| फिर माता-पिता के चरण छूकर...|| ...भद्रबाहु अपने भाग्य-विधाता के साथ चल दिया।
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