________________ 16-26] कूर्मापुत्रर्षिकथानकम् ततो भद्रमुखी देवी प्राह तं हृष्टमानसा / प्राक् पुण्यायागतः (पुण्येनागतः) स्वामिन्नध दृष्टश्चिराद्भवान् // 16 // कुमारस्तामथालोक्य दृष्टेयं काप्यहो मया / विमृशन्निति सस्मार जातिं प्राग्जन्मनः क्षणात् // 17 // तस्यां प्राग्भवभार्यायामनुरागं ततो दधौ। कुमारः सुतरां यत्प्राक्स्नेहस्त्यक्तुं न शक्यते // 18 // अशुभान्पुद्गलान्हृत्वा क्षिप्त्वा च शुभपुद्गलान् / तत्तनौ यक्षिणी तेन साकं भोगान्भुनक्ति सा // 19 // इतः शोकाकुलेनैतत्पित्रा स त्ववलोकितः / सर्वत्रापि न लब्धोयं लभ्यते क सुरैर्हतम् // 20 // विमुक्तोहारयो राजराश्योः पुत्रवियोगतः / . केवल्यकथ्यतात्मीयपरीवारेण सोऽद्भुतः // 21 // ततोतीव वियोगातॊ गत्वा केवलिसंनिधौ / . .. अपृच्छतां यथास्थानमुपविश्येदमादरात् // 22 // स्ववशो रक्षणे केनापहृतो दुर्लभोङ्गजः / भगवान्नो ततः कृत्वा कृपामिति निवेदय // 23 // ज्ञान्याह वां कुमारः स यक्षण्यापहृतोधुनो / ज्ञानी ताभ्यां पुनः पृष्टस्तत्स्वरूपं जगौ ततः // 24 // मिलिष्यति कदा नौ स स्वामिस्तावूचतुः पुनः। इह भूयो यदैष्यामो मिलिष्यति स वां तदा // 25 // संविग्नौ ताविति श्रुत्वा दुर्लभानुजमात्मजम् / न्यस्य राज्येथ भेजाते चारित्रं ज्ञानिनोन्तिके // 26 // .