________________ शुभवर्धनगणिप्रणीत [5-15 केवलिविद्विज्ञाताशेषपदार्थ समेत्य सा सुगुरुं / पप्रच्छ भक्तिनम्रां सुलोचनं प्रणतिमाधाय // 5 // . मानुष्यपि पूर्वभवे मानवती नाम मुनिपतेभूवम् / प्राणप्रिया सुवेलाभिधस्य वेलंधरसुरस्य // 6 // स्वल्पायु:क्षययोगात्तादृक्पुण्यक्षयाच्च समकालम् / भद्रमुखी नामाहं मृत्वा यक्षण्यभूवमिह // 7 // सुवेलाख्यः सुरः स्वामिन्किमास्ते कथयेति मे / केवल्याह ततश्चयुत्वा भद्रे स त्वदनुद्रुतम् // 8 // द्रोणनृपस्य सुतस्य समस्ति संप्रति च वल्लभो जातः / भस्मिनगरे सुलभो नाम्ना खलु दुर्लभोप्येष // 9 // एवं निशम्य सम्यग् हृष्ठ सा यक्षिणी गुरुं नत्वा / कृतमानवतीरूपा ययौ ततो दुर्लभसमीपे // 10 // मनुजोत्क्षेपक्रीडापरायणं तं निरीक्ष्य सोवाच / रकैरभिः किमहो मामनुधावाशु चेञ्चित्तम् // 11 // स तामन्वचलत्तूर्णं निशम्येति च दुर्लभः / तत्पुरः सापि धावन्ती तमानेषीद्वने निजे // 12 // बहुशालवटस्याधो वत्समानयति स्म सा। पातालविविधस्वर्णमणीमयमिमं गृहम् // 13 // तन्मणामयमालोक्य भवनं भूपभूस्ततः / विस्मितोचिन्तयदत्र केनानीतोस्म्यहं द्रुतम् // 14 // अथ विस्मितचित्ताय तस्मै भूपसुते मुदा (भूपसुताय सा)। विनिवेश्य स्वपल्यके प्रतिपत्तिमथ व्यधात् // 15 //