________________ कुम्मापुत्तचरिअं [36-42 गच्छिज्जा, देवे णाम एगे छवीए सद्धिं संवासमागच्छिज्जा, छेवी णाम एगे देवीए सद्धिं संवासमागच्छिज्जा, छवी णाम एगे छवीए सद्धिं संवासमागच्छिज्जा" इओ अ- .. अह तस्सम्मापियरो पुत्तविओगेण दुक्खिआ निचं / संव्वत्थ वि सोहंति अ लहंति न हि सुद्धिमत्तं पि॥३७॥ देवेहि अवहरि नरेहि पाविज्जए कहं वत्थु / जेण नराण सुराणं सत्तीए अंतरं गरुअं // 38 // अह तेहि दुक्खिएहिं अम्मापियरेहि केवली पुट्ठो। भयवं कहेह अम्हं सो पुत्तो अस्थि कत्थ गओ // 39 // तो केवली पयंपइ सुणेह सवणेहि सावहाणमणा। तुम्हाणं सो पुत्तो अवहरिओ वंतरीए अ॥४०॥ ते केवलिवयणेणं अईव अच्छरिअविम्हिआ जाया / साहंति कहं देवा अपवित्तनरं अंबहरंति // 41 // यदुक्तमागमे• चत्तारि पंच जोयणसयाई गंधो अ मणुयलोगस्स / उड्डूं बच्चइ जेणं न हु देवा तेण आयंति // 42 // 1 ख पुस्तके " देवे णाम एगे छवीए” इत्यादितृतीयचतुर्थभङ्गो द्विवारं पठितौ / 2 अ. सव्वत्थ वि सोहियं पुण अलहियं सुद्धिमत्तं पि। 3 क वत्थं; ब वत्थु; छ वुत्तं. 4 ख च छ ज. मणो. 5 क. वंतराए; अ घ च. विंतरीए. 6 अ. अवहरंति णं. 7 क छ त ट पुस्तकेषु " चत्तारि पंच जोयणसयाइं०” इतिप्रकारकः आर्याद्वयस्य स्थाने संक्षेपः पठयते / अ पुस्तके “यदुक्तमागमे-चत्तारि पंच....सुरा इहय” इतिपाठो ग्रन्थान्तर्गतो नोपलभ्यते / गुर्जरभाषाटीकायां प्रथमा आर्यैव केवलमुपलभ्यते / ख पुस्तके केवलं प्रथभैवार्या समुपलभ्यते /