________________ 32 सिरिरयणसेहरसूरिहिं संकलिया तं सोऊणं राया विम्हिअचित्तो गओ तमावासं / पणओ य कुमारेण मयणासहिएण विणएणं // 322 लज्जाऽऽणओ नरिंदो पभणइ घिद्धी ममं गयविवे। जं दप्पसप्पविसमुच्छिएण कयमेरिसमकज्जं // 323 // वच्छे ! धन्नाऽसि तुमं कयपुना तंसि तंसि सविवेआ। तं चेव मुणियतत्ता जीए एयारिसं सत्तं // 324 // उद्धरिअं मज्झ कुलं उद्धरिया जीइ निययजणणी वि / उद्धरिओ जिणधम्मो सा धन्ना तसि परमिक्का // 325 // अन्नाणतमंधेणं दुद्धरऽहंकारगयविवेगेणं / जो अवराहो तइआ कओ मए तं खमसु वृच्छे ! // 326 // विणओणया य मयणा भणेइ मा ताय ! कुणसु मणखें। एयं मह कम्मवसेण चेव सव्वंपि संजायं // 327 // / नो देइ कोइ कस्सवि, सुक्खं दुक्खं च निच्छओ एसो। निअयं चेव समन्जिअमुवभुञ्जइ जंतुणा कम्मं // 328 // मा वहउ कोइ गव्वं जं किर कज्ज मए कयं होइ / सुरवरकयपि कज्ज कम्मवसा होइ विवरीअं // 329 // ता ताय ! जिणुत्तं तचमुत्तमं मुणसु जेण नाएणं / नज्जइ कम्मजियाण बलाबलं बंधमुक्खं च // 330 // तत्तो धम्म पडिवज्जिऊण राया भणेइ संतुट्ठो / सीहरहरायतणो जं जामाया मए लद्धो // 331 //